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[ सड़सठ ]
श्रीमद् की प्रतीत चौबीसी पर श्रावकवयं मनसुखलालजी ने सं० १९६५ में दाहोद में गुजराती में बालावबोध बनाया । इसमें श्रीमद् द्वारा रचित २१ ही स्तवन हैं, मनसुखभाई ने तीन स्तवन स्वयं बनाकर चौबीस की पूर्ति की है। वीसी का अनुवाद मनसुखभाई के ही सहयोगी व शिष्य श्री सन्तोकचन्द्रजी ने सं० १९६६ में दाहोद में किया । ये दोनों 'बालावबोध' सं० १९६७ में 'सुमति प्रकाश' ग्रन्थ में प्रकाशित हो चुके हैं। इसके बाद बीकानेर से अलग-अलग रूप में क्रम से सं० २००६ व २००७ में प्रकाशित हुए।
श्रीमद् के आगमसार का हिन्दी अनुवाद बहुत वर्षों पूर्व योगीराज श्री चिदानन्दजी महाराज ने किया था, जिसे जमनालालजी कोठारी ने अभयदेवसूरि प्रन्थमाला से प्रकाशित करवाया था। इसके बाद विद्ववर्य प्रानंद सागर सूरीश्वरजी कृत हिन्दी विवेचन के साथ प्रस्तुत ग्रन्थ सैलाना (म० प्र०) से प्रकाशित हुआ। नयचक्रसार का हिन्दी रूपान्तर फलोदी से प्रकाशित हुआ है।
'साधु पद स्वाध्याय' नामक दोनों सज्झायों पर योगीराज ज्ञानसारजी ने हिन्दी भाषा में विद्वत्तापूर्ण एवं समालोचनात्मक विस्तृत टब्बा लिखा है। इसके प्राधार पर संक्षिप्त हिन्दी भावार्थ केशरीचन्दजी धूपिया ने तैयार किया, जो श्रीमद् देवचन्द्र ग्रन्थमाला कलकत्ता से 'पच भावनादि सज्झायसार्थ में प्रकाशित हुआ हैं। 'भष्टप्रवचनमाता सज्झाय' पर गुजराती अनुवाद एवं 'पंचभावना सज्झाय पर
अज्ञातकर्तृक टब्बा है। सं० २०२० में दोनों पर नेमिचन्द्रजी जैनकृत हिन्दी भावार्थ कलकत्ता से प्रकाशित हुआ है।
व 'बड़ी साधु-वंदना' का स्थानकवासी समुदाय में बहुत आदर हुआ हैं। वे होग इसके ४-५ संस्करण निकाल चुके है । सं० २००६ में श्री मधुकर मुनिजी के नुवाद व कवि श्री अमरचन्द्रजी की भूमिका सहित एक संस्करण निकाला है।
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