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[ पचपन ]
बोलते-बोलते कर्ता की शुभ परिणाम धारा सचमुच बढ़ने लगती हैं,
पुत्र तुम्हारो धणीय हमारो। तारण-तरण जहाज,
मात जतन करी राखज्यो एहने । तुम सुत अम आधार, यह कड़ी बोलते तो रोमांच हो जाता है। हृदय ऐसे पवित्र एवं मधुर भावों से भर जाता है जो वाचातीत है । स्नात्रपूजा के अन्त में श्रीमद् ने जो कहा कि
'बोधि-बीज अंकूरो उलस्यो...."अर्थात् इस जन्ममहोत्सव के छन्द को जो भव्यात्मा प्रादरेगा, उसके हृदय में बोधिबीज (समकित) प्रकट होगा। इसकी सत्यता अर्थ के विवेकसहित स्नात्रपूजा करने वाले भक्त प्रतिदिन प्रमाणित कर
वस्तुतः श्रीमद् की स्नात्रपूजा अजोड़ और बेजोड़ है। इसमें भक्ति का जो प्रखण्डप्रवाह प्रवाहित हुआ वह इतना सघन है कि इसके बाद आज तक जो स्नात्रपूजाएँ वनी वे आपको पूजा की आनुवादमात्र ही प्रतीत होती हैं।
. नवपदपूजा
भक्ति के क्षेत्र में यह तीन महापुरुषों की एक मधुर प्रसादी है । उपाध्याय शोविजयजी द्वारा रचित श्रीपालरास के चौथे खण्ड से कुछ ढालें लेकर श्रीमद् ने इन पर उल्लाले लिखे और ज्ञानविमलसरिजी ने काव्य लिखे इस भाँति इसका नर्माण हुआ। इस पूजा को जैन समाज में बड़ा आदर मिला। महोत्सवों आदि मांगलिक प्रसंगों में इस पूजा को प्रथम स्थान दिया जाता है और बड़ी रूचिपूर्वक
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