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[ सत्तावन ] कूट-कूट कर भरा है। चौबीस में तीन स्तबनों की कमी है। हो सकता है, इसकी पूर्णता के लिये श्रीमद् को समय न मिला हो । :. विहरमान-जिन-वीसी
यह सीमन्धर प्रभु आदि विहरमान बीस तीर्थंकर की स्तवना है। यह भी श्रीमद् की अत्यन्त लोकप्रिय कृति है। - श्रीमद् की ये रचनायें श्रद्धा, भक्ति एवं तर्क का अपूर्व त्रिवेणी संगम है। ये स्तवन कल्पना की कोरी उड़ान मात्र ही नहीं हैं, किन्तु स्वानुभव को गहराई से निकले हुए लब्धि वाक्य हैं इसीलिये तो उनका एक एक शब्द हृदय पर सीधा असर करता है। १०. वीर-निर्वाण-स्तवन
इस स्तवन के लिये अपनी ओर से कुछ कहने के बजाय नागकुमार जी मकातो के कथन को उद्ध त कर देना ही अधिक उपयुक्त होगा "भव्य करूण रस थी टपकतु वोर विरहनु ब्यान करतु श्री वीरप्रभुनु स्तवन श्रीमद् ना सर्व काव्यों मां प्रथम उभे तेवूछे । एनी स्पर्धा करी शके तेवां बीजां काव्यो साराय गुर्जर-साहित्यमां गण्यां गांठयां ज छे, ए एकज काव्य श्रीमद् ने अमरता बक्षे तेम छ ।
'नाथ विहुणु सैन्य ज्यू रे, वीर विहुणो रे संघ । साधे कुण आधारथी रे, परमानन्द अभंग रे ।।
वीर प्रभु सिद्ध थया ॥ 'मात विहुणो बाल ज्यूरे, अरहो परहो अथडाय । वीर विहुणा जीवड़ा रे. आकुल-व्याकुल थाय रे॥
वीर प्रभु सिद्ध थया ।
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