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[ बतीस ]
अपर मिथ्यात्त्वी जीवड़ा रे, तेहनी विद्यानो पोस । अपूर्व शास्त्रनी वांचना रे, देतां न करें सोस रे । विद्यादान थी अधिकता रे, नहिं कोई अवरते दान ।
न करे प्रमाद भणावतां रे, व्यसननो नहीं तोफान ॥"
कवियण के इस कथन की सत्यता अध्येता मुनिवर स्वयं अपनी कृतियों में सिद्ध करते हैं।
· तपागच्छ के प्रखर विद्वान् गिने जाने वाले पण्डित जिनविजयजी, उत्तम. विजयजी एवं विवेक विजयजी ने आपके पास अनन्य श्रद्धा और भक्तिपूर्वक अध्ययन किया था।
पण्डित जिनविजयजी ने आपके पास महाभाष्य का पारायण किया था, जिसका वर्णन श्री उत्तमविजयजी ने 'श्री जिनविजय निर्वाण रास' में बड़े प्रादरपूर्वक किया है
'खिमाविजय गुरू कहण थी, पाटण मां गुरू पास । स्व. पर समय अवलोकतां, कीधा बहु चौमास ॥ श्री ठाकुरशी कने पढया, शब्द शास्त्र सुखवास । 'ज्ञानविमलसूरि' कने, वांची 'भगवतो' खास ॥ 'महाभाष्य' अमृत लह्यो, 'देवचंद' गणि पास ।
(जैन रासमाला पृष्ठ १४५ तथा दे० गी० पृ० (२३) . श्री बमविजयजी ने आपके पास अध्ययन किया, उसका वर्णन पद्मविजयजी कृत श्री इसम विजय निर्माण रास में इस भांति है
बसर गच्छ मां ही थयारे लोल, नामे श्री देवचंद रे सौभागी जैन सिद्धान्त शिरोमणी रे लोल, धैर्यादिक गुणवृन्द रे सौभागी .
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