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[ चौवालोस ] हाँ, श्रीमद् के द्वारा प्रतिबोधित श्रावक-शिष्यों की संख्या अवश्य विपुल रही होगी, यह उनके ग्रन्थों के निर्माण, प्रचार, संरक्षण, संघ प्रतिष्ठादि कार्यो से स्पष्ट है। आपके भक्त श्रावकों ने आपके द्वारा रचित 'अध्यात्मगीता' को 'स्वर्णाक्षरों में लिखाया था। आपके भक्त श्रावकों में कई श्रावक सिद्धांतों के ज्ञाता, श्रोता एवं अध्यात्मप्रेमी थे।
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साहित्य-सृजन :
श्रीमद् केवल विद्वान ही नहीं थे, किन्तु सफल साहित्य सष्टा भी थे अनेक विषयों का पहिले उन्होंने स्वयं गम्भीर अध्ययन किया, बाद में स्वतंत्रचिन्तन-मनन द्वारा उन विचारों को चिरंजीवी अक्षर-देह देकर सवभोग्य बनाया।
आपके द्वारा रचित प्रसिद्ध एवं अप्रसिद्ध कृतियों की संख्या विशाल हैं। आपने गद्य और पद्य दोनों में लिखा। भाषा की दृष्टि से संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी एवं गुजराती में लिखा। कहीं कहीं व्रजभाषा व मराठी का पुट भी उल्लेखनीय है। गद्य और पद्य विभाजन के अनुसार आपकी कृतियां निम्न हैं ।
गद्य-कृतियाँ
१. प्रागमसार
यह ग्रन्थ जैनागमों का दोहन रूप (निचोड़) है। जैन दशन के मुख्य मुख्य तत्वो को चुनकर इस ग्रन्थ में उनका सरल एवं स्पष्टभाषा में रहस्योद्घाटन किया हैं। षड़ द्रव्य, पाठपक्ष, सातनय, चारनिक्षेप, चार प्रमाण, सप्तभंगी, गुगणास्थानक इत्यादि १७ विषयों पर बड़ी गंभीरता से इसमें विचार किया है। यह ग्रन्थ जैन
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