________________
[ पैंतोस ]
और गुणग्राही थे। अापने श्वेताम्बर ग्रन्थों के साथ साथ दिगम्बर ग्रंथों का भी अध्ययन किया। विद्वान दिगम्बर प्राचार्यों को स्तुतियाँ की । अन्य गच्छ के प्राचार्यों व मुनियों के भी स्वरचित ग्रंथों में गुणगान गाए, उनकी स्तुतियां बनाई।
श्रीमद् खरतरगच्छ के थे। वे खरतर गच्छ की समाचारी की पालना करते थे पर आप सभी गच्छबालों का आदर और सम्मान करते थे। आपने अपने रचित ग्रंथों में कभी भी अन्य गच्छों का निदा या ग्रालोचना नहीं की। यद्यपि उस समय तपगच्छ के मुनि धर्म सागरजो ' द्वारा लिखित ग्रंथ (जिसमें सभी गच्छों की कट मालोचना व निन्दा की गई थी) के कारण सभी गच्छों में रोष व अाक्रोष का उभार
१-पाटन में तपगच्छ के महान् प्राचार्य विजयदान सूरिजी व प्राचार्य श्री विजय हीरसूरि सहित सभी गच्छ के प्राचार्यों ने मिल कर मुनि धर्म सागरजी को उनके इस मिथ्या प्रलापी, कलहपूर्गा घासलेटी रचना के कारण संघ से बाहर कर दिया था। साथ ही उनके इस ग्रथ को सर्व सम्मति से जल शरण करने का ठहगव किया और भविष्य में इस ग्रंथ को कोई प्रकाश में न लाए ऐसा स्पष्ट निर्देश दिया।
हमें लिखते हए अत्यन्त खेद होता है कि जिन समयज्ञ व गीतार्थ महापुरूषों ने सर्व सम्मति से धर्म सागरजी रचित ग्रन्थ को जल शरण किया था। प्राज उस समय कहीं छिपाकर रखे गये उसी ग्रंथ का महारा लेकर कुछ कलह प्रिय नाम धारी माधु उसके कुछ अंशों का यदा-कदा प्रकाशित करने की कुचेष्टा करते है । निस्संदेह यह उन गीतार्थ पुरूषों का अपमान व अनादर है। साथ ही यह उनके संकुचित व प्रोछे विचारों का परिचायक है।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org