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* श्रीवीतरागाय नमः
* ॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ॐ
॥ अथ तत्त्वार्थसूत्रकी सर्वार्थसिद्धिटीका ॥ दोहा- श्रीवृषभादि जिनेश्वर । अंत नाम शुभ वीर ॥ मन वच काय विशुद्धकरि । वंदौ परमशरीर ॥ १॥
करमधराधर भेदि जिन । मरम चराचर पाय ॥ धरमवरावर कर नमूं । सुगुरुपरापरपाय ॥ २ ॥ शद्ब्रह्मकुं मैं नमूं। स्यात्पदमुद्रित सोय ॥ कहै चराचर वस्तुको : सत्यारथ मल धोय ॥३॥
आप्त मूल आगमतणूं । एकदेश जु अनूप ॥ तत्त्वारथ शासन सही। करौं वचनिकारूप ॥ ४॥ ऐसें आप्तआगमका नमस्काररूप मंगल करि श्रीउमास्वामी नाम आचार्यविरचित जो दशाध्यायरूप तत्त्वार्थशास्त्र, ताकी देशभाषामय वचनिका लिखिये है। तहां ऐसा संबंधकी सूचना है । जो श्रीवर्धमान अंतिमतीर्थकरकू निर्वाण भये पीछे, तीन केवली तथा पांच श्रुतकेवली इस पंचमकालविर्षे भये । तिनिमें अंतके श्रुतकेवली श्रीभद्रबाहुस्वामीकू देवलोक गये पीछे कालदोषतें केतेइक मुनि शिथिलाचारी भये । तिनिका संप्रदाय चल्या । तिनिमें केतेइक वर्ष पीछे एक देवर्षिगण नाम साधु भया । तिहि विचारी, जो, हमारा संप्रदाय तो बहुत वध्या, परंतु शिथिलाचारी कहावे हैं, सो यह युक्त नहीं । तथा आगामी हमतें भी हीनाचारी होयेंगे। सो ऐसा करिये;
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