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सानुवाद व्यवहारभाष्य
हैं।)
उत्कृष्ट। जघन्यतः बहुक है तीन मास। उत्कृष्टतः पांच सौ का प्राश्यचित्त दिया है वही शुद्ध है, शेष मास नहीं। अतः मेरी चौरासीमास। इनके मध्य है-मध्यमबहुक। (ये प्रायश्चित्त स्थान शुद्धि नहीं हुई है। यह आशंका न हो इसलिए उसे स्थापना
आरोपणा के प्रकार से सभी मासों को सफल करना चाहिए। उसे ३५१. ठवणा-संचय- रासी, माणाइ पभू य कित्तिया सिद्धा। पूरा प्रायश्चित्त उस पद्धति से देना चाहिए।
दिट्ठा निसीधनामे, सव्वे वि तहा अणायारा ।। ३५५. ठवणामेत्तं आरोवणत्ति इति णाउमतिपरीणामो। स्थापना, संचयराशि, प्रायश्चित्त का प्रमाण, प्रभु
कुज्जा व अतिपसंगं, बहुए सेवित्तु मा विगडे ।। प्रायश्चित्त देने वाले, प्रायश्चित्त के कितने प्रकार। निशीथ नामक अतिपरिणामक यह सोचता है कि आरोपणा प्रायश्चित्त अध्ययन में ये सभी प्रायश्चित्त के भेद देखे गये हैं। इतने ही नहीं, केवल स्थापना मात्र है। यह जानकर वह अतिप्रसंग करता है सभी अनाचार भी देखे हैं। (यह द्वार गाथा है। इस गाथा का अर्थात् बार-बार उसी में यह सोचकर प्रवर्तित होता है कि अनेक विस्तार आगे की गाथाओं में।)
मासों की प्रतिसेवना का प्रायश्चित्त केवल एक मास ही है। ३५२. बहुपडिसेवी सो विय,गीतोऽगीतो वि अपरिणामो य।। अथवा वह अनेक मासों की प्रतिसेवना करके भी सभी मासों की
अहवा अतिपरिणामो, तप्पच्चयकारणा ठवणा।। आलोचना न करे। प्रायश्चित्त प्रतिपत्ता पाच प्रकार के पुरुष होते हैं-गीतार्थ, ३५६. ठवणा वीसिग पक्खिग, पंचिग एगाहिया य बोधव्वा । अगीतार्थ, परिणामक, अपरिणामक तथा अतिपरिणामक। जो
आरोवणा वि पक्खिग, पंचिग तह पंच एगाहा ।। अगीतार्थ है, अपरिणामक अथवा अतिपरिणामक है, उनके (स्थापना के चार स्थान-१. तीस स्थान २. तेतीस स्थान प्रत्यय के लिए स्थापना-आरोपणा की विधि से छह माह का ३.३५ स्थान ४.१७९ स्थान। आरोपणा के भी ये ही स्थान हैं। प्रायश्चित्त तक दिया जाता है।
स्थापना के प्रथम स्थान में जघन्य स्थापना बीस रात्री-दिवस, ३५३. एगम्मि णेगदाणे, णेगेसु य एगदाणमेगेगं।। दूसरे स्थान में पाक्षिक, तीसरे स्थान में पांच दिवसात्मक, चौथे
जं दिज्जति तं गिण्हति, गीतमगीतो य परिणामी ।। स्थान में एक दिनमात्र। आरोपणा के प्रथम स्थान में पाक्षिकी,
जो गीतार्थ है अथवा अगीतार्थ होते हुए भी परिणामी है। दूसरे स्थान में पांच दिवसात्मक, तीसरे स्थान में पंच उसे एक मास की प्रतिसेवना करने पर भी (राग-द्वेष-हर्ष की दिवसात्मिका और चौथे स्थान में एक दिन। ये सर्वजघन्य वृद्धि के कारण) अनेक मासों का प्रायश्चित्त दिया जाता है अथवा स्थापना-आरोपणा के स्थान हैं। अनेक मासों की प्रतिसेवना करने पर (मंद अध्यवसाय के ३५७. वीसाए अद्धमासं, पक्खे पंचाहमारुहेज्जाहि । कारण) एक मास का प्रायश्चित्त दिया जाता है अथवा एक मास पंचाहे पंचाहं, एगाहे चेव एगाहं ।। की प्रतिसेवना करने पर एक परिपूर्ण मास का प्रायश्चित्त दिया बीस दिन के जघन्य स्थापना स्थान में जघन्य आरोपणा जाता है तो वह सम्यकप से ग्रहण करता है। (उसे स्थापना- स्थान है अर्द्धमास का। पक्ष प्रमाण वाले स्थापना स्थान में आरोपणा के प्रकार से प्रायश्चित्त नहीं दिया जाता।)
जघन्य आरोपणा स्थान है पांच दिन का। पांच दिन वाले स्थापना ३५४. बहुएसु एगदाणे, सोच्चिय सुद्धो न सेसगा मासा । स्थान में जघन्य आरोपणा स्थान है पांच दिन का और एक दिन
माऽपरिणाम संका, सफला मासा कता तेणं ।।। के स्थापना स्थान में जघन्य आरोपणा स्थान है एक दिन का।
अनेक मासों की प्रतिसेवना करने पर यदि एक मास का ३५८. ठवणा होति जहन्ना, वीसं राइंदियाणि पुण्णाई। प्रायश्चित्त दिया जाता है तो अपरिणामक (अतिपरिणामक या पण्णटुं चेव सयं, ठवणा उक्कोसिया होति ।। अगीतार्थ) के मन में यह आशंका हो सकती है कि जो एकमास प्रथम स्थापना स्थान में जघन्य स्थापना होती है-परिपूर्ण
१.गीतार्थ के लिए स्थापना-आरोपणा की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि
वह उक्तार्थग्राही होता है। अगीतार्थ यदि परिणामक है तो उसके लिए भी यह आवश्यक नहीं होता। अपरिणामक और अतिपरिणामक के लिए स्थापना-आरोपणा आवश्यक होती है।
स्थापना-जितने महीनों या दिनों की प्रतिसेवना की उन सभी को एकत्र स्थापित किया जाए। पश्चात् संक्षिस बीस दिन आदि की प्रतिसेवना का अंक लिखा जाए यह स्थापना है।
आरोपणा-इनके बाद जिन अन्य मासों की प्रतिसेवना की है
उन प्रत्येक मास से प्रतिसेवना के परिणामानुरूप स्तोक, स्तोकतर, विषम अथवा सम दिवसों को ग्रहण कर एकत्रित रोपण करना आरोपणा है। यह उत्कर्षतः तब तक करनी चाहिए जब तक कि स्थापना के साथ जोड़ने पर छह मास पूरे होते हों, अधिक नहीं। स्थापना और आरोपणा का एकत्र संकलन संचय कहलाता है। इसी आधार पर अपरिणामक और अतिपरिणामक को प्रायश्चित्त दिया जाता है।
(वृ. पत्र ५८) २. मात्र शब्द तुल्यवाची है (निशीथचूर्णि, व्य. वृ. पत्र ५९)
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