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पहला उद्देशक
४७ तीन-२०, ३५, ७० दिन की।
तीसरी उसके उतने भाग करके आद्य भाग को १५ से गुणन करे। दो-१५, ४५ दिन की।
शेष समस्त भागों का संकलन कर पांच से गुणा करे। तदनंतर एक-६० दिन की।
स्थापना के दिनों से युक्त होने पर छह मास प्राप्त होते हैं। एक-२५ दिन की।
४२०. जति मि भवे आरुवणा, चार-१५, २०, ३०, ४० दिन की।
ततिभागं तस्स पण्णरसहि गुणे। एक-५५ दिन की
ठवणारोवणसहिता, दो-१५, २५ दिन की।
छम्मासा होंति नायव्वा ।। तीन-२०, २५,५० दिन की।
जितने भागवाली आरोपणा हो जैसे-पहली, दूसरी या तीन-१५, ३०, ४५ दिन की।
तीसरी उसके उतने भाग करके, आद्यभाग को १५ से गुणन करे। १०० दो-२०, ४० दिन की।
उससे स्थापना-आरोपणा के दिनों सहित होकर छह मास प्राप्त १०५ दो-१५, २५ दिन की।
होते हैं। ११० एक-३५ दिन की।
४२१. जेण तु पदेण गुणिता, होऊणं सो न होति गुणकारो। १२० तीन-१५, २०,३० दिन की।
तस्सुवरिं जेण गुणे, होति समो सो हु गुणकारो ।। १३० एक-२५ दिन की।
(आरोपणा दिनों को) जिस पद से गुणन करने पर वह एक-१५ दिन की।
षण्मास परिमाण सेन्यून या अधिक होता है तो वह गुणकार नहीं १४० एक-२० दिन की।
होता। उसके अनंतर जिससे गुणन करने पर षण्मास परिमाण के १५० एक-१५ दिन की।
सम होता है वह है गुणकार।२ ४१८. सव्वासिं ठवणाणं, एत्तो सामण्णलक्खणं वोच्छं। ४२२. जतिहि गुणे आरोवण, ठवणाजुत्तो हवंति छम्मासा ।
मासग्गे झोसग्गे, हीणाहीणे य गहणे य।। तावतियारुवणाओ, हवंति सरिसाऽभिलावाओ ।। अब मैं सभी स्थापनाओं और आरोपणाओं का सामान्य
आरोपणा के दिनों को जितने से गुणा करने पर तथा लक्षण कहूंगा। प्रतिसेवितमासों का परिमाण, झोषाग्र-झोष स्थापना दिवसों को मिलाने पर छहमास परिमाण (१८० दिन) संख्या का परिमाण तथा संचयमासों से हीन-अहीन के ग्रहण होता है, वह कृत्स्ना आरोपणा है। सभी कृत्स्ना आरोपणाएं विषयक बात कहूंगा।
सदृश अभिलाप वाली होती हैं अर्थात् वे सभी अंक सदृश ४१९. जति मि भवे आरोवण, ततिभागं तं करे ति-पंचगुणं ।। अभिलाप वाले कहलाते हैं। (जैसे पाक्षिकी आरोपणा में
सेसं पंचहि गुणिए, ठवणादिजुता उ छम्मासा ।। स्थापनापों की भिन्नता के आधार पर १०,९,८,७,६,५,४, जितने भाग वाली आरोपणा हो, जैसे-पहली, दूसरी या ३,२,१-ये सभी अंक सदृश आलापक वाले हैं अर्थात् छह मास
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१. यदि एक ही भाग हो तो सभी को १५ से गुणन करे और स्थापना तथा ५ से गुणन करने पर ६० हुए। इनको पूर्ण राशि में मिलाने पर
आरोपणा के दिन मिलाए। झोष विशुद्ध वे छह मास होंगे। यदि (७५+६०) १३५ हुए। इसमें स्थापना दिन २० और आरोपणा दिन अनेक भाग हों तो आद्यभाग को १५ से गुणन करे, शेष सबको पांच २५ मिलाने पर १८० हो गये। से गुणन करे। स्थापना आरोपणा के दिन मिलाने से छह मास होंगे। २. जैसे पाक्षिकी आरोपणा और विंशिका स्थापना है। आरोपणा के दिनों जैसे-२० दिन की स्थापना और १५ दिन की आरोपणा में १३ को १० से गुणन कर स्थापना दिनों को मिलाने पर संचयमास होते हैं। उनमें से आरोपणामास और दो स्थापनामास (१५४१०+२०=१७०) ये छह मास से कम हैं। ११ से गुणन करने निकालने पर दस मास रहे। वे प्रथम आरोपणा के दस मास हुए। पर अधिक होते हैं। यह गुणकार नहीं है। सम आने पर ही वह इनको १५ से गुणन करने पर १५० हुए। ५ को झोष करने पर १४५ आरोपणा कृत्स्ना होती है। जैसे ३० दिन की स्थापना, पाक्षिकी हुए। इसमें २० स्थापना दिवस और १५ आरोपणा दिन मिलाने पर आरोपणा-१५४१०+३०-१८० यह कृत्स्ना आरोपणा है। १८० हुए। इसी प्रकार बीस दिन की स्थापना और २५ दिन की उदाहरण-पाक्षिकी आरोपणा में स्थापनादिनों की अधिकता से आरोपणा में २३ संचयमास, इनमें से दो स्थापना मास और तीन भिन्न-भिन्न अंक गुणकार माने जाते हैं। जैसे ४५ दिन की स्थापना में आरोपणा मास को निकालने पर (२३-५) १८ रहे। यह त्रिभागस्था ९, ६० दिन में ८,७५ दिन में ७, १०५ दिन में ५, १२० दिन में ४, आरोपणा है। एक-एक भाग छह-छह का हुआ। प्रत्येक भाग को १५ १३५ दिन में ३, १५० दिन में २ तथा १६५ दिन में १ ये अंक से गुणन करने पर(६४१५) ९० हुए। इसमें १५ का झोष होने पर गुणकार हैं अर्थात् कृत्स्ना आरोपणा के द्योतक हैं।
७५ रहे। शेष दोनों भागों को मिलाने पर (६+६) १२ हुए। इनको Jain Education International For Private & Personal Use Only
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