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पहला उद्देशक ३९२. पढमा ठवणा पंच य, पढमा आरोवणा भवे पंच। । छत्तीसामासेहिं, एसा पढमा भवे कसिणा ।।
तृतीय स्थान में प्रथम स्थापना के ५ दिन और प्रथम आरोपणा के ५ दिन। यह ३६ मास की प्रतिसेवना से निष्पन्न होती है। यह प्रथम कृत्स्ना आरोपणा है। ३९३. पढमा ठवणा पंच य, बितिया आरोवणा भवे दस उ।
एगूणवीसमासेहिं, पंच तु राइंदिया झोसो।।
तृतीय स्थान में प्रथम स्थापना के ५ दिन और दूसरी आरोपणा के दस दिन। यह १९ मास की प्रतिसेवना से निष्पन्न होती है। इसमें ५ रात-दिन का झोष होता है। ३९४. पढमा ठवणा पंच य, ततिया आरोवणा भवे पक्खो ।
तेरसहिं मासेहिं, पंच तु राइंदिया झोसो ।।
तृतीय स्थान में प्रथम स्थापना के ५ दिन और तीसरी आरोपणा के १५ दिन। यह १३ मास की प्रतिसेवना से निष्पन्न होती है। इसमें ५ रात-दिन का झोष होता है। ३९५. एवं एता गमिता, गाहाओ होति आणुपुवीए। ___एतेण कमेण भवे, छच्चेव सयाइ तीसाइं.।।
इस प्रकार की गाथाएं आनुपूर्वी से उक्त क्रम से अन्यान्य भी होती हैं। उनकी संख्या है ६३०॥ ३९६. अउणासीतं ठवणाण, सतं आरोवणा वि तह चेव ।
सोलस चेव सहस्सा, दसुत्तरसयं च संवेधो ।।
चौथे स्थान में स्थापनापद १७९ होते हैं और आरोपणा के पद भी उतने ही होते हैं। उनकी संवेध संख्या १६११० होती
एक दिन की होती है। यह १८० मास की प्रतिसेवना से निष्पन्न होती है। यह प्रथम कृत्स्ना आरोपणा है।' ३९८. पढमा ठवणा एक्को, बितिया आरोवणा भवे दोन्नि ।
एक्कानउतिमासेहिं, एक्को उ तहिं भवे झोसो।।
चतुर्थ स्थान में प्रथम स्थापना का एक दिन तथा दूसरी आरोपणा दो दिन की होती है। यह ९१ मास की प्रतिसेवना से निष्पन्न होती है। इसमें एक दिन का झोष (प्रक्षेप) होता है। ३९९. पढमा ठवणा एक्को, ततिया आरोवणा भवे तिन्नि ।
एगट्ठीमासेहिं, एक्को उ तहिं भवे झोसो ।।
चतुर्थ स्थान में प्रथम स्थापना का एक दिन और तीसरी आरोपणा के तीन दिन। यह ६१ मास की प्रतिसेवना से निष्पन्न होती है। इसमें एक दिन का झोष (प्रक्षेप) होता है। ४००. एवं खलु गमिताणं गाहाणं होति सोलससहस्सा ।
सतमेगं च दसहियं, नेयव्वं आणुपुव्वीए ।।
इस प्रकार गमिक-उक्तरूप के वैकल्पिक गाथाएं आनुपूर्वी के क्रम से १६११० अन्यान्य गाथाएं होती हैं। ४०१. असमाहीठाणा खलु, सबला य परीसहा य मोहम्मि ।
पलितोवम-सागरोवम, परमाणु ततो असंखेज्जा ।।
(शिष्य ने पूछा-यह प्रायश्चित्त राशि कैसे उत्पन्न हुई ?) आचार्य ने कहा-जितने असमाधि के स्थान हैं, शबल दोष हैं, परीषह हैं तथा मोहनीय के स्थान अथवा मोहनीय कर्मबंध के कारण हैं-इन असंयम स्थानों से ही इस प्रायश्चित्त राशि की उत्पत्ति होती है। (शिष्य ने पूछा-क्या असंयम के स्थान इतने ही हैं ?) आचार्य ने कहा-पल्योपम तथा सागरोपम के व्यावहारिक परमाणु जितने बालानों के खंड होते हैं, उनसे असंख्येय गुना अधिक असंयमस्थान हैं। कोई आचार्य कहते हैं कि उन बालागों
३९७. पढमा ठवणा एक्को, बितिया आरोवणा भवे दोन्नि ।
आसीतं माससतं, एसा पढमा भवे कसिणा ।। चतुर्थ स्थान में प्रथम स्थापना और प्रथम आरोपणा एक
१. जैसे यहां गच्छांक १७९।१८० में से प्रथम स्थापना दिन और प्रथम
आरोपणा दिन-इन दो को निकालने पर १७८। इसमें एक का भाग दिया। वही १७८ की संख्या आयी। उसमें रूप-एक मिलाया। संख्या १७९ हुई। इसको एक से गुणनकरने पर वही संख्या। एक से हीन करने पर १७८ हुई। इसमें आदि का एक मिलाने पर १७९। यह अंतिम धन संख्या है। इसमें आदि का एक मिलाने पर १८०। गच्छांक विषम है। उसको सम कर आधा करने पर ९० की संख्या आई। इसको १७९ से गुणन करने पर १६११० की संख्या आती
है। २. १८० संख्या से स्थापना दिन एक तथा आरोपणा दिन एक को निकालने पर शेष १७८ रहे। इसमें एक का भाग देने पर १७८ आए। इसमें एक स्थापनामास और एक आरोपणामास का प्रक्षेप करने पर (१७८+२) १८० हुए। किस मास से कितने दिन ग्रहण किए गए, इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया कि एक-एक मास एक-एक
दिन लेने पर १८० दिन (अर्थात् छहमास) हुए। इसमें भाग पूरा गया
इसलिए शुद्ध है तथा अन्यान्य कृत्स्ना आरोपणाओं में प्रथम है। ३. १८० में से एक स्थापना दिन और दो आरोपणा दिनों को निकालने
पर (१८०-३) १७७ दिन रहे। इसमें दो दिन की आरोपणा का भाग पूरा नहीं होता, अतः इसमें एक का झोष-प्रक्षेप करने पर १७८ हुए। इसमें दो का भाग देने पर ८९ हुए। इसमें एक स्थापना मास और एक आरोपणा मास का प्रक्षेप करने पर ९१ हुए। किस मास से कितने दिन? ९१ संचयमास से एक स्थापना मास निकालने पर ९० रहे। इसको आरोपणा के दो दिनों से गुणन करने पर ९०४२=१८० हुए। एक का झोष करने पर १७९ हुए। एक स्थापना दिन मिलाने पर १८० हुए। इससे यह ज्ञात होता है कि स्थापनीकृत मास से एक दिन तथा शेष से दो-दो दिन। इस प्रकार सारे १८० दिन हुए।
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