Book Title: Sanuwad Vyavharbhasya
Author(s): Dulahrajmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 434
________________ दसवां उद्देशक ३९५ एकमास, चारमास अथवा छहमास का हो वह 'कृत्स्न' (संपूर्ण) चार मास का छेद-चार अंगुल भाजन का छेद करे। शब्द मय हो। आगे छेद प्रायश्चित्त के विषय में कहूंगा। छह मास का छेद-छह अंगुल भाजन का छेद करे। ४४९४. पढमस्स य कज्जस्सा, ये सारे छेद प्रायश्चित्त के विकल्पों के सांकेतिक शब्द हैं। दसविहमालोयणं निसामेत्ता। ४५००. बितियस्स य कज्जस्सा, नक्खत्ते भे पीला, तहियं चउवीसतिं निसामेत्ता। कण्हे मासं तवं कुज्जा॥ नवकारेणाउत्ता, ४४९५. पढमस्स य कज्जस्सा,दसविहमालोयणं निसामेत्ता। भवंतु एवं भणेज्जासी॥ नक्खत्ते मे पीला, चउमासतवं कुणसु किण्हे। दूसरे कार्य अर्थात् कल्पिका से संबंधित-चतुविंशति की ४४९६. पढमस्स य कज्जस्सा,दसविहमलोयणं निसामेत्ता। आलोचना सुनकर आलोचनाचार्य सांकेतिक शब्दों में कहते नक्खत्ते भे पीला, छम्मासतवं कुणसु किण्हे॥ हैं-तुम उनको कहना कि आप नमस्कार में आयुक्त हों। प्रथम कार्य की दसविध आलोचना को सुनकर नक्षत्र एक ४५०१. एवं गंतूण तहिं, जधोवदेसेण देति पच्छित्तं। मास प्रायश्चित्त तथा षट्क त्रिक में पीड़ा की जाने पर एक मास आणाय एस भणितो, ववहारो धीरपुरिसेहिं।। कृत्स्न (संपूर्ण) तप करना, चारमास कृत्स्न तप करना अथवा वह आचार्य के वचनों को धारण कर वहां जाकर छह मास कृत्स्न तप करना-यह प्रायश्चित्त है। आचोलना करने के इच्छुक मुनि/आचार्य को यथोपदिष्ट रूप में ४४९७. छिंदंतु व तं भाणं, गच्छंतु य तस्स साधुणो मूलं।। प्रायश्चित्त देता है। धीरपुरुषों ने इसे आज्ञाव्यवहार कहा है। अव्वावडा व गच्छे, अब्बितिया वा पविहरंतु॥ ४५०२. एसाऽऽणाववहारो, जहोवएसं जहक्कम भणितो। छेद प्रायश्चित्त प्राप्त हो तो कहे-भाजन का छेद कर दो। धारणववहारं पुण, सुण वच्छ! जहक्कम वोच्छं। यदि मूल प्रायश्चित्त प्राप्त हो तो कहे-साधु अथवा गच्छाधिपति आज्ञाव्यवहार का यह यथोपदिष्ट यथाक्रम निरूपण है। दूर विहरण कर रहे हों तो उनके पास जाकर प्रायश्चित्त लो। यदि वत्स! अब मैं धारणाव्यवहार के विषय में क्रमशः कहूंगा। तुम अनवस्थाप्य प्रायश्चित्त प्राप्त हो तो कहे-गच्छ में अव्याप्त होकर रहो। पारांचित प्रायश्चित प्राप्त हो तो कहे-अद्वितीय ४५०३. उद्धारण विधारण, संधारण संपधारणा चेव। अर्थात् एकाकी होकर विहरण करो। नाऊण धीरपुरिसा, धारणववहार तं बेति॥ ४४९८. छब्भागंगुलपणगे, दसराय तिभागअद्धपण्णरसे। धारणा शब्द के चार एकार्थ हैं-उद्धारणा, विधारणा, वीसाय तिभागूणं, छब्भागूणं तु पणुवीसे॥ संधारणा, संप्रधारणा। जो छेदसूत्रों के सम्यक् अवधारणा से ४४९९. मास-चउमास छक्के, व्यवहार होता है, धीर पुरुष उसे धारणाव्यवहार कहते हैं। अंगुल चउरो तहेव छच्चेव। ४५०४. पाबल्लेण उवेच्च व, उद्धियपयधारणा उ उद्धारा। एते छेदविगप्पा, विविहेहि पगारेहिं, धारेयऽत्थं विधारो उ॥ नायव्व जहक्कमेणं तु॥ ४५०५. सं एगीभावम्मी, धी धरणे ताणि एक्कभावेणं। छेद प्रायश्चित्त के यथाक्रम ये संदेश हैं धारेयऽत्थपयाणि तु, तम्हा संधारणा होति॥ पांच रात-दिन का छेद आने पर कहे-अंगुल का छठाभाग ४५०६. जम्हा संपहारेउं, ववहारं पउंजती। भाजन का छेद करे। तम्हा कारणा तेण, नातव्वा संपधारणा। दस रात-दिन का छेद आने पर कहे--अंगुल का तीसरा प्रबलता से अथवा अर्थ के निकट पहुंचकर छेद सूत्रों में भाग भाजन का छेद करे। उद्धृत अर्थपदों को धारण करना उद्धारा-उद्धारणा है। विविध पंद्रह रात-दिन का छेद आने पर कहे-अंगुल का आधा प्रकार से अर्थपदों को धारण करना-विधारणा है। 'सं' एकीभाव भाग भाजन का छेद करे। के अर्थ में है। 'धुंधरणे' धातु है। उन अर्थपदों को आत्मा के साथ बीस रात-दिन का छेद आने पर कहे-तीन भाग न्यून । एकीभाव से धारण करना संधारणा है। सम्यक् प्रकार से अंगुल भाजन का छेद करे। अवधारणा कर व्यवहार का प्रयोग करना संप्रधारणा है। पच्चीस रात-दिन का छेद आने पर कहे-छह भाग न्यून ४५०७. धारणववहारेसो, पउंजियव्वो उ केरिसे पुरिसे ?। अंगुल भाजन का छेद करे। भण्णति गुणसंपन्ने, जारिसए तं सुणेह ति॥ एक मास का छेद-पूर्ण अंगुल भाजन का छेद करे। धारणाव्यवहार का प्रयोग कैसे पुरुष के प्रति किया जाए? जम्चात सुनो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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