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सानुवाद व्यवहारभाष्य से ज्ञात नहीं हो पाता कि यह स्वाभाविक है या देवकृत, इसलिए दिवस और वह रात्री अस्वाध्यायिक रूप में मानी जाती है। इसी सर्वसामान्यरूप से इनका परिहार किया है।
प्रकार चंद्रमा रात्री में ग्रस्त हुआ और उसी रात्री में मुक्त हो गया ३११९. दिसिदाह छिन्नमूलो, उक्कसरेहा पगासजुत्ता वा।। और जब तक दूसरा चंद्रमा उदित नहीं होता तब तक अस्वाध्याय
___ संझाछेदावरणो, उ जूवओ सुक्क दिण तिनि॥ रहता है अर्थात् वह रात्री और अपर दिन-इस प्रकार अहोरात्र का
दिग्दाह अर्थात् दिशाओं में छिन्नमूल वाला प्रज्वलन, अस्वाध्याय रहता है। उल्का-रेखा सहित अथवा प्रकाशयुक्त विद्युत्, यूपक अर्थात् ३१२४. चउसंझासु न कीरति, पाडिवएसुं तधेव चउसुं पि। संध्याच्छेदावरण। शुक्ल पक्ष के तीन दिन (द्वितीया, तृतीया
जो तत्थ पुज्जती तू, सव्वहिं सुगिम्हओ नियमा।। तथा चतुर्थी)-इनमें चंद्र संध्यागत होता है। संध्या नहीं जानी चारों संध्याओं (सूर्यास्त के समय, अर्धरात्री में तथा जाती। संध्या का छेद अर्थात् विभाग। उसको आवृत करता है प्रभात और दिन के मध्य में) तथा चारों प्रतिपदाओं (आषाढ़ी चंद्र। इसलिए यह संध्याच्छेदावरण कहलाता है।
पौर्णमासी की प्रतिपदा, इंद्रमहप्रतिपदा, कार्तिक पौर्णमासी ३१२०. केसिंचि होतऽमोहा, उ जूवओ ते य होति आइण्णा।। प्रतिपदा और चैत्र पौर्णमासी प्रतिपदा)-इनमें स्वाध्याय का
जेसिं तु अणाइण्णा, तेसिं खलु पोरिसी दोण्णि।।। प्रतिषेध है। (इन चार प्रतिपदाओं से चार मह-उत्सव सूचित कुछेक आचार्य शुक्लपक्ष के इन तीन दिनों में शुभाशुभ- हैं।) जिस देश में जिस दिन से उत्सव प्रारंभ होता है और जितने सूचक अमोघा मानते हैं। वही यूपक है। वे इसको आचीर्ण मानते काल तक पूजित होता है उतने काल तक उस देश में स्वाध्याय हैं अर्थात् इसमें स्वाध्याय का परिहार नहीं किया जाता। जो का वर्जन है। सुग्रीष्मक अर्थात् चैत्रमास में होने वाला महामह। आचार्य अनाचीर्ण मानते हैं उनके अनुसार यूपक पौरुषी का हनन । चैत्र शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से चैत्रपूर्णमासी प्रतिपदा पर्यंत करता है अर्थात् दो पौरुषी तक स्वाध्याय नहीं किया जाता। नियमतः अनागाढ़योग का निक्षेपण किया जाता है। ३१२१. चंदिमसूरुवरागे, निग्घाते गुंजिते अहोरत्तं। ३१२५. वुग्गहदंडियमादी, संखोभे दंडिए य कालगते। __ चंदो जहण्णेणट्ठ उ, उक्कोसं पोरिसी बि छक्कं।
अणरायए य सभए, जच्चिर निद्दोच्चऽहोरत्तं॥ ३१२२. सूरो जहण्ण बारस, उक्कोसं पोरिस उ सोलस उ। व्युग्राहिक अस्वाध्यायिक दंडिक आदि का परस्पर
। सग्गह निव्वुड एवं, सूरादी जेणऽहोरत्ता॥ व्युद्ग्रह होने पर तथा एक दंडिक के कालगत हो जाने पर जब
चंद्रग्रहण, सूर्यग्रहण, निर्घात (व्यंतरकृत महाध्वनि), तक दूसरा राज्याभिषिक्त नहीं हो जाता तब तक जनता में संक्षोभ गुंजित (गर्जन की महाध्वनि) इनमें प्रत्येक के लिए एक-एक होता है। जब तक संक्षोभ रहता है तब तक स्वाध्याय नहीं अहोरात्र तक स्वाध्याय का परिहार किया जाता है। चंद्रग्रहण कल्पता। व्युद्ग्रह आदि में जब तक वातावरण अस्वस्थ रहता है जघन्यतः आठ प्रहर और उत्कृष्टतः बारह प्रहर के स्वाध्याय का तब तक अस्वाध्यायकाल है। तथा जब म्लेच्छों आदि का भय हनन करता है। सूर्यग्रहण जघन्यतः बारह प्रहर और उत्कृष्टतः रहता है तब भी स्वाध्याय वर्जित है। वातावरण स्वस्थ हो जाने सोलह प्रहर के स्वाध्याय का हनन करता है। सग्रह अस्तमित पर भी एक अहोरात्र तक स्वाध्याय का वर्जन करना चाहिए। होने पर सूर्योदय काल से अहोरात्र तक तथा दूसरा अहोरात्र भी ३१२६. सेणाहिवई भोइय, महयर पुंसित्थिमल्लजुद्धे य। स्वाध्याय के लिए परिहरतव्य है।
लोट्टादिभंडणे वा, गुज्झग उड्डाहमचियत्तं॥ ३१२३. आइन्नं दिणमुक्के, सो चिय दिवसो य राती य। दो सेनापतितियों में, भोजिकों-ग्रामस्वामियों में, महत्तरों___निग्घात गुंजितेसुं, सा चिय वेला उ जा पत्ता॥ ग्रामप्रधानों में अथवा महत्वपूर्ण पुरुषों अथवा स्त्रियों में,
पूर्व श्लोक में जो कहा है-सूर्यादि अहोरात्र-इसका तात्पर्य मल्लयुद्ध में, अथवा परस्पर पत्थरों से लड़ने वालों में जब तक यह है-सूर्य दिन में ग्रस्त हुआ और दिन में ही मुक्त हो गया तो वह कलह शांत नहीं हो जाता तब तक अस्वाध्याय काल है। क्योंकि १. चंद्रमा राहु द्वारा ग्रस्त हुआ। उस रात्री के चार प्रहर, दूसरे दिन के चार प्रहर और रात्री के चार प्रहर-इस प्रकार सोलह प्रहर हुए।
चार प्रहर-इस प्रकार आठ प्रहर। प्रभातकाल में चंद्र सग्रह अस्त २. कुछ आचार्य मानते हैं-सूर्य दिन में ग्रस्त हुआ और दिन में ही मुक्त हो हुआ। उस दिन के चार प्रहर, रात्री के चार प्रहर तथा दूसरे दिन के गया तो दिन का शेषभाग तथा रात्री-इसमें स्वाध्याय का परिहार है। चार प्रहर-इस प्रकार बारह प्रहर हुए।
इसी प्रकार चंद्र रात्री में ग्रस्त हुआ है और रात्री में ही मुक्त हो गया तो सूर्य सग्रह अस्त हुआ। रात्रि के चार प्रहर, दिन के चार प्रहर रात्री के शेष भाग तक स्वाध्याय का परिहार करना चाहिए। निर्घात और रात्री के चार प्रहर-इस प्रकार बारह प्रहर। सूर्य उदित होते ही और गुंजित-दिन की जिस वेला में ये होते हैं, दूसरे दिन उसी वेला राहु से ग्रस्त हुआ। पूरा दिन सग्रह में स्थित रहकर सग्रह में ही अस्त तक अस्वाध्याय रहता है। यह उनके अहोरात्र का प्रमाण है। हुआ-इस प्रकार दिन के चार प्रहर, रात्री के चार प्रहर, अपर दिन के
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