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* श्रीवीतरागाय नमः *
- संशयतिमिरप्रदीप
॥ मङ्गलाचरण ॥
शरद निशाकर कान्ति सम विशद कान्ति जिन देह। चन्द्रप्रभु जिनदेव के पद नमु धर मन नेह ॥
इन्द्र साधु जनवृन्द कर बन्दित चरण त्रिकाल । जगजन चिर सञ्चित कलिल शमन करहु मुनिपाल ॥
तुमगुण जलधि गंभीर अति मुनिपति भी तिहिं पार। लगै न तो पर का कथा जे जन विगत विचार ॥
अशरण शरण दयाल चित हे जिन तुम मुख चन्द । जगमिथ्यासन्ताप को शीतल करहु अमन्द ॥
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