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संशयतिमिरप्रदीप।
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आचमनं सदा कार्य स्नानेन रहितेऽपि च । आचमनयुतो देही जिनेन शौचवान्मतः ॥ अर्थात्-पहले जल से शरीर के द्वारों को शोधन करना चाहिये फिर तीन बार आचमन करके प्राणवायु का शोधन करना योग्य है । यदि कार्य वशात् स्नान नहीं किया जाय तो भी आचमन तो अवश्य करना चाहिये । जो पुरुष आचमन करके युक्त रहता है उसे जिन भगवान शौचवान कहते हैं। ___इत्यादि शास्त्रों के अनुसार वहिः शुद्धि गृहस्थों का सब से पहला कर्तव्य है। गृहस्थ लोग वहिःशुद्धि के विना देव पूजनादिकों के अधिकारी नहीं है इसीसे अनुमान किया जा सकता है कि गृहस्थों को लौकिक क्रियाओं की कितनी आवश्यक्ता है। इसविषय में सोमसेनाचार्य का कहना है किःशोचकृत्यं सदा कार्य शौचमूलो गृही स्मृतः । शौचाचारविहीनस्य समस्ता निष्फलाः क्रियाः॥ अर्थात्-बहिः शुद्धि के लिये शौचाचार सम्बन्धि क्रियाओं में हर समय उपाय करते रहना चाहिये । क्योंकि गृहस्थ शौचाचार क्रियाओं का प्रधान कारण है । जो पुरुष शौचाचार सम्बन्धि क्रियाओं से रहित रहता है उस की सम्पूर्ण क्रियायें निष्प्रयोजन समझनी चाहिये।
पाठक ! इस तरह शास्त्राज्ञा के मिलने पर भी इसविषय में लोगों की कितनी उपेक्षा है कि उन्हें ये क्रियायें रुचती ही नहीं हैं। खैर ! इतने पर भी वे मिथ्यात्व की कारण बतलाई जाती हैं यह कितनी अयोग्य बात है इसे विचारना चाहिये । इतने कहने का तात्पर्य यह है कि मनमानी प्रवृति को छोड़कर शास्त्र मार्ग पर आरूढ होना चाहिये।
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