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संशयतिमिरप्रदीप |
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जाते। अभी तो हमारी गृहस्थ अवस्था है इसलिये आरंभ का त्याग नहीं कर सकते। रात्रि के पूजन करने मैं आरंभ को छोड़कर किसी और कारण से दाष कहाजाता तो उसपर विचार भी करने का कुछ अवसर रहता परन्तु यदि खास इसी हेतु से निषेध किया जाता है तो वह ठीक नहीं है । क्योंकि प्रतिष्ठादि महोत्सव में भी कितने काम रात्रि में होते हैं और उन्हें करनेही पड़ते हैं यदि इसी बिचार से रात्रि के पूजन का निषेध किया जाय तो इन्हें भी छोड़ना पड़ेंगे। रही अयत्नाचार की, सो यह तो अपने आधीन है यदि किया जाय तो रात्रि में भी हो सकता है और नहीं करने से दिन में भी नहीं हो सकेगा। यदि कहोगे जो बात दिन में हो सकती है वह रात्रि में शतांश भी नहीं हो सकती ? अस्तु रहे, परन्तु रात्रि में दीपकादिकों के प्रकाश में जितना हो सके उतना ही अच्छा है। रात्रि में मन्दिरादि जाने के समय मार्ग का ठीक निरीक्षण नहीं होता तो क्या दर्शनादि करना छोड़ देना चाहिये ? यत्नाचार का यह तात्पर्य नहीं है । किन्तु जहां तक हो सके बहुत सावधानता से काम करना चाहिये। इसका भी विशेष खुलासा पञ्चामृताभिषेक, पुष्पपूजन, तथा दीपपूजनादि लेखों में अच्छी तरह किया गया है उन्हें देखना चाहिये । प्रश्न प्रतिष्ठादि विधियों के रात्रि सम्बन्धी आरम्भ को लेकर उसे नित्य क्रिया में उदाहरण बना देना ठीक नहीं है वे तो नैमित्तिक क्रियायें हैं उनमें रात्रि में यदि कोई बात हो भी तो कोई विशेष हानि नहीं।
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