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संशयतिमिरप्रदीप।
उत्तर-नैमित्तिक क्रियाओं में रात्रि में भी आरम्भ होना स्वी
कार करते हैं यह अच्छी बात है । यह बात हम भी किसी लेख में लिख आये हैं कि रात्रि पूजन करना नैमित्तिक विधि है । इसका काम आकाश पञ्चमी तथा चन्दनषष्ठी आदि व्रतों में पड़ता है । नित्य विधि में केवल दीप पूजन सन्ध्या के समय करनी पड़ती है। उमा स्वामि महाराज ने श्रावकाध्ययन में लिखा है किः
"सन्ध्यायां दीपधूपयुक्" अर्थात्-सायंकाल में दीप और धूप से जिन भगवान् की पूजन करनी चाहिये । और भी बहुत से शास्त्रों में त्रिकाल पूजन करना लिखा हुआ मिलता है। प्रश्न-सन्ध्या समय के पूजन करने को तो हम भी स्वीकार
करते हैं उस में क्या हानि है हमारा निषेध करना तो
रात्रि पूजन के विषय में है। उत्तर-जब सन्ध्या काल में पूजन करना मानते हो तो रात्रि
में पूजन करना तो सुतरां सिद्ध होजायगा । क्योंकि शास्त्रों के अनुसार सायंकाल में कुछ रात्रि का भी भाग आजाता है । फिर भी रात्रि पूजन का निषेध करना योग्य नहीं है । अब शास्त्रों को देखिये कि रात्रि पूजन
के विषय में किस तरह लिखा हुआ है। व्रतकथाकोष में श्रुतसागर मुनि आकाश पञ्चमी की विधि यो लिखते हैं:
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