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संशयतिमिरप्रदीप।
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शासनदेवता किसलिये सत्कारादि के पात्र हैं। और भी शासन देवताओं के विषय में सुनिये । ज्वालामालिमीकल्प में लिखा है कि
सम्यक्त्वद्योतका यक्षा दुष्टदेवापसारिणः । सम्मान्या विधिवद्भव्यैः प्रारब्धेज्यादिसिद्धये । अर्थात्-सम्यक्त्व के उद्योत करने वाले और दुष्टदेवों के दूर करने वाले शासनदेवता आरंभ किये हुवे प्रतिष्ठादि महोत्सवो में यथायोग्य भव्यपुरुषों को मानने चाहिये। इत्यादि संहिता, प्रतिष्ठापाठादि शास्त्रों में शासनदेवताओं के आव्हाननादि विषय में सविस्तर लिखा है। उसे किसी तरह कोई अयोग्य नहीं बता सकता। और न शासनदेवता के आराधन वेगरह से देवतामूढ दोष का भागी होना पड़ता है । परन्तु वह आराधन स्वार्थ छोड़ कर यशस्तिलक के लिखे हुवे श्लोकों के अनुसार होना चाहिये । उसके विपरीत चलने वाले वास्तव में दोष के भागी होंगे। इतने शास्त्रों के प्रमाण होने पर भी यदि किसी महाशय के हृदय में सन्देह कील पहले की तरह पीड़ा देती रहे तो उनके लिये एक और उपाय लिखते हैं मैं आशा करता हूं कि यह अन्तिम प्रयत्न वास्तव में उनलोगों को मुखावह, होगा। जिनदेव की पूजन विधि के अन्त में विसर्जन करने की सब जगहँ पृथा है । विसर्जन पाठ भी सब जगहँ
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