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संशयतिमिरप्रदीप।
एक ही तरह से पढ़ा जाता है उसी में यह लिखा हुआ है कि__ आहूना ये पुरा देवा लब्धभागा यथाक्रमम् ।
ते मयाऽभ्यर्चिता भक्तया सर्वे यान्तु यथास्थितिम् ॥ इसका अर्थ यह है-पूजन की आदि में जिन २ देवताओं का मैंने आव्हाननादि किया है। भक्ति करके पूजा ( सत्कार ) को प्राप्त हुवे वे सब देवता अपने योग्यपूजन के भाग को ग्रहण करके अपने २ स्थान को जावं इस श्लोक में “ यथाक्रमं लब्धभागाः " "यथास्थितिम्" आदि पद ऐसे पड़े हुवे हैं जिनसे स्पष्ट शासन
देवतादि का बोध होता है। प्रश्न यह कहना ठीक नहीं है क्योंकि इसी श्लोक में “ते मयाऽ
भ्यर्चिता भक्तया” यह पद भी पड़ा हुआ है इससे स्पष्ट होता है कि यहां जिनदेव का सम्बन्ध है क्योंकि शासन देवताओं की भक्ति पूर्वक पूजन करने को तुम्हीं पहले
निषेध लिख आये हो ? उत्तर यह कहना ठीक है परन्तु जरा विचारने का भी विषय
है । हमारा यह कहना तो नहीं है कि इसमें जिनदेव शामिल नहीं है किन्तु जिनदेव के साथ २ जिन देवताओ का और भी आव्हानन किया गया है वे सब देवता
अपने २ स्थान को जावे । यदि वास्तव में यह बात न होती तो " यथाक्रमं लब्धभागाः ” अर्थात् अपने योग्य सत्कार को पाये हुवे तथा “ यथास्थितिम्" अर्थात् अपने २ स्थान को इत्यादि पदों की कोई आवश्यक्ता न थी। इन पदों से स्पष्ट शासनदवेताओं का भी ज्ञान होता है।
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