Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 189
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७० संशयतिमिरप्रदीप । योगेऽस्मिन्नाकनाथ, ज्वलनपितृपतेनैगमेय प्रचेतो वायो रैदेशशेषोडुपसपरिजना यूयमेत्य ग्रहानाः । मन्त्रैर्भूः स्वः सुधाद्यैरधिगतवलयः स्वासु दिसूपविष्टाः क्षेपीयः क्षेमदक्षाः कुरुत जिनसवोत्साहिनं विघ्नशान्तिम् । इसी तरह अनेकशास्त्रों में शासनदेवताओं के सम्बन्धं में लिखा हुआ है उसे मानना चाहिये । प्राचीन आचार्यों की कृति का उच्छेद करना महापाप है। प्रध्वस्तघातिकर्माणः केवलज्ञानभास्कराः । कुर्वन्तु जगतः शान्ति वृषभाद्या जिनेश्वराः ।। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः मङ्गलभूयात् । SHARE HAVA For Private And Personal Use Only

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