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संशयतिमिरप्रदीप।
इन्हें तो मूर्ख लोगों ने स्थापित कर रखे हैं। इन श्लोकों में यक्ष, क्षेत्रपालादि को का भी नाम आया है परन्तु वे जिनशासन के देवता नहीं है। यह बात इन श्लोको
से ही खुलासा होती है। प्रश्न- इस में प्रमाण क्या है जो इन्हें शासनदेवताओं से पृथक्
समझे? उत्तर-आदिपुराणादि से शासनदेवताओं और मिथ्यात्वी
देवताओं का पृथक्पना अच्छी तरह सिद्ध होता है। क्योंकि मांसवृत्तिवाले देवताओं का उन्होंने निषेध किया है। और शासनदेवताओं की तो यह वृत्ति नहीं है । अस्तु, थोड़ी देर के लिये यह भी गौण करदिया जाय। परन्तु जिन ग्रन्थकार का बनाया हुआ सारचतुर्विशति का है उन्हीं ने वर्द्धमानपुराण के १२ व अधिकार में इस
तरह शासनदेवताओं के विषय में लिखा हैलभन्तेऽत्र यथा यक्षा जिनायब्जाश्रयान्महम् । तथानीचा मनुष्याश्च पूजां तव प्रसादतः ॥
अर्थात्-जिस तरह इस संसार में यक्षादि देवता तुम्हारे चरणकमलो के आश्रय से पूजा को प्राप्त होते हैं उस तरह मनुष्य भी आप के अनुग्रह से पूजा को प्राप्त होता है। अब तो शासनदेवता तथा मिथ्यात्वी देवों का भेद मालूम हुआ न ? शासन देवता दायी नहीं है इसीलिये मान्य है सो भी नहीं है किन्तु प्रणिधानपूर्वक विचार करने से यह बात सहज अनुभव में आसकेगी कि
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