Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 183
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ संशयतिमिरप्रदीप। इन्द्रनन्दि स्वामी पूजासार में लिखते हैंयक्षं वैश्वानरं रक्षोऽनातं पन्नगासुरौ । मुकुमाराभिधानं च पितरं विश्वमालिनम् ।। चमरं रोचनं देवं महाविद्यं मरं तथा । विश्वेश्वरं च पिंडाशं तिथिदेवान्समाहये ॥ (तिथिदेवता मालामंत्रः) भर्थात्-यक्ष, वैश्वानर, राक्षस,अनादृत, पन्नग, असुर, सुकुमार, पिता, विश्वमाली, चमर,रोचन, देव महाविद्य, विश्वेश्वर, तथा पिंडाश इन तिथिदेवताओं का आव्हानन करता हूं। तथा इन्द्रनन्दिसंहिता मेंयक्षो वैश्वानरो रक्षोऽनादृतः पन्नगासुरौ । सुकुमारः पिता विश्वमाली चमरविश्रुतिः ॥ वैरोचनो महाविद्यो मारो विश्वेश्वराहयः । पिंडाशी चेति ताः प्रोक्ता देवताः प्रतिसन्मुखः ॥ उहाँ काँ प्रशस्तवर्ण २ यक्षवैश्वानरराक्षसाऽनादृतपन्नगाऽसुरसुकुमारपितृविश्वमालिचमरवैरोचन महाविद्यमारविश्वे श्वपिंडाशिनाम पञ्चदशतिथिदेवा आगच्छत २ स्वधा । इत्यादि अनेक जगहँ विश्वेश्वर देव का नाम आता है। विश्वेश्वर किसी खास देव का नाम है उसी को आदि लेकर और भी शासनदेवताओं का आदि पुराण में सम्बन्ध है । इसलिये शासनदेवतासादर विनय के योग्य For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197