Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 175
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। किया जाता है यह क्यों ? अरे तुम्हारे कथनानुसार तो केवल जिनदेव ही पूजने चाहिये । कदाचित् कहो कि यह कहना अनुचित है क्योंकि जिनमन्दिर, समव शरण तथा सिद्ध क्षेत्रादिको की जो पूजन करते हैं उस का कारण यह है कि उनमें जिन भगवान विराजे हैं अर्थात् यो कहो कि सद्भिरध्युषिता धात्री पूज्या तत्र किपद्धतम् ॥ अर्थात्-जिस जगहँ पर महात्मा लोग विराजते हैं अथवा जिस जगहँ से वे निर्वाण स्थान को पाते हैं वह उन्हों के माहात्म्यादि का सूचक है इसलिये जिनमन्दिरादि भी पूज्य हैं तात्पर्य यह कहा जा सकता है कि-यह महात्मा पुरुषों का माहात्म्य है कि जिनके आश्रय से छोटी से छोटी भी वस्तु सत्कार के योग्य हो जाती है। यदि यही कहना है तो फिर शासनदेवता सत्कार के योग्य क्या नहीं हैं उन्होंने क्या जिन देव का आश्रय नहीं पाया है क्या वे जिन धर्म के धारक भक्त नहीं है ऐसे कहने का कोई साहस करेगा? कदाचित् कहो कि जिनदेव के शासन को एक छोटी जाति का मनुष्य भी मानने लग जाय तो क्या उसके साथ भी वैसाही सत्कारादि करना चाहिये जैसा और भाइयों का किया जाता है ? अवश्य ! उसमें हानि क्या है ? यदि वह जैनमत का अनयायी है तो अवश्य सत्कार का पात्र हैं। जैनशास्त्रों में हजारों ऐसी कथायें मिलेगी कि छोटी छोटी जाति के मनुष्यों ने For Private And Personal Use Only

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