Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 180
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। १६१ हो सकता । फिर शासनदेवता पूज्य कैसे कहे जा सकंगे? कदाचित् कहो कि शासनदेवता जिनशासन के रक्षक हैं तथा धर्मात्मा लोगों की सहायता करते हैं इसलिये वे पूजन के योग्य हैं ? परन्तु यह भी भ्रम है क्यों कि विघ्नों का दूर होना जितना जिनपूजन से नाश हो सकेगा क्या उसकी समानता शासनदेवताओं के पूजनादि से हो सकेगी ? इसे शास्त्र तो नहीं कहता मन से चाहे जो भले ही मान लिया जाय । शास्त्रकारों का कहना है किविघ्नौघाः प्रलयं यान्ति शाकिनीभूतपन्नगाः । विषं निर्विषतां याति पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ इस अटल शास्त्रमर्यादा को देखते हुवे शासनदेवताओं के ऊपर भक्ति का संचार नहीं होता । और न कभी स्वप्न में भी यह भावना होती है कि शासनदेवताओं को पूज्य दृष्टि देखें ? उत्तर यह तो हम भी कहते हैं कि जिनभगवान् को छोड़ कर इस संसार में जैनियों के लिये दूसरा कोई पूज्य नहीं है और न हमारा यह कहना है कि जिनदेव की उपासना छोड़ कर शासनदेवता ही पूजे जायें । परन्तु यहां पर पूजन का जैसा अर्थ समझा जाता है वेसा शासनदेवताआके विषय में कहना नहीं है। पूजन का अर्थ सत्कार है वह सत्कार अधिकरण की अपेक्षा से अनेकभेद रूप है। माता पिता का सत्कार उनके योग्य किया जाता है, पढ़ाने वाले विद्यागुरुओं का सत्कार उनके योग्य For Private And Personal Use Only

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