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संशयतिभिरप्रदीप। १४५ तत्कथं दुहितमि नभस्य पञ्चमीदिने । शुचावुपोषितं कार्य प्रदोष श्रीजिनौकसि ॥ आकाशे पीठमास्थाप्य चतस्त्रः प्रतियातनाः । तत्र तासां विधातव्यं यामे यामे सवादिकम् ॥ तथाहि पूर्व कर्त्तव्यं यथावदभिषेचनम् ।
चर्चनं स्तवनं जापस्तत्रैषा स्तुतिरुच्यते ।। अर्थात्-किसी कन्या के लिये मुनि का उपदेश है कि पुत्रि ! यदि तुम आकाश पञ्चमी के व्रत की विधि सुनना चाहती हो तो सुनो में शास्त्रानुसार कहता हूँ । भाद्रपद शुक्ल पञ्चमी के दिन उपवास करके रात्रि के समय जिन मन्दिर में आकाश में मनोहर सिंहासन को स्थापन करना चाहिये । और उस पर चार जिन भगवान् की प्रतिमायें विराजमान करके प्रहर २ में उनका अभिषेकादि करना चाहिये । इसके बाद पूजन स्तवन जप तथा यह स्तुति पढ़ना चाहिये इत्यादि ।
चन्दनषष्ठी कथा में लिखा है कि:भद्र ! चन्दनषष्ठीयमीदृग्पापक्षये आमा । स्वर्गादिफलदा नृणां सा कथं चेदितः शृणु ॥ भाद्रकृष्णे गुरून्नत्वा षष्ठयां कुर्यादुपोषितम् । चैत्यलयाग्रतश्चन्द्रोदये चन्द्रप्रभं प्रभुम् ॥ सलिलादिभृतःशुरैः पश्चभिःकलशादिभिः । षद्कृत्वः पूजयेत्पूजाद्रव्यैः षट्षमकारकैः ॥
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