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संशयतिमिरप्रदीप।
नालिकेरमहाबीजपूरकूष्मांडदाडिमैः । पूर्णश्च पनसैरर्घ दद्याद्गन्धाक्षतैरपि । अर्थात्-कोई मुनिराज चन्दनषष्ठी व्रत की विधि किसी भव्य पुरुष को उपदेश करते हैं कि-भद्र ! इस प्रकार यह चन्दनषष्ठी पापों के नाश करने के लिये समर्थ है और मनुष्यों के लिये स्वर्ग तथा मोक्ष के मुखों की देने वाली है । यदि तुम पूछोगे कि उस की विधि किस तरह हैतोसुनो मैं यथार्थ कहता हूँ। पञ्चपरमेष्टी को नमस्कार पूर्वक भाद्रपद कृष्ण षष्ठी (छठ) के दिन उपवास करना चाहिये । और रात्रि में चन्द्रमा का उदय होजाने पर चन्द्रप्रभ जिन भगवान् की, सलिल, इंभुरस, दधि, आदि शुद्ध पञ्चामृतों से भरे हुवे कलशों से, तथा छह छह पूजन द्रव्यों से पूजन करनी योग्य है । तथा नालिकेर, बीजपूर, कुष्मांड ( कोला), दाडिम, सुपारी, पनस और गन्धाक्षतादि का अर्घ देना चाहिये । इसी तरह और भी कथा कोषादि में रात्रि पूजन का नैमित्तिक विधान है । केवल विधान ही नहीं है किन्तु कितने पुण्य मूर्तियों ने नैमित्तिक तिथियों में रात्रि के समय पूजन की भी है। सम्यक्त्व कौमुदी में लिखा है:अहंदासः सपर्नाको निजधानि जिनेशिनः । पूजामहनिशं चक्रे यावदष्टौ प्रवासरान् । मर्थात्-अपनी वल्लभाओं के साथ अहदास सेठ ने आठ दिन तक रात्रि और दिन जिन भगवान् की पूजन की। ___ उत्तर पुराणान्तर्गत बर्द्धमान पुराण में महर्षि सकल कार्ति कहते है:
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