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संशयतिमिरप्रदीप |
प्रश्न- रहे यह बात, परन्तु रात्रि पूजन में तो और भी कितनी
हानिये हैं ? उत्तर- वह कौन सी हैं ?
प्रश्न--रात्रि पूजन में बड़ी भारी हानि तो यह है कि इस से असली जैन मत के उद्देश का घात होता है ?
उत्तर - हानि हो या नहो मनकी कल्पना तो अवश्य हो जानी चाहिये। क्या इसबात के बताने का अवसर मिलेगा कि जैनमत का असली उद्देश क्या है और रात्रि में पूजन करने से उसका निर्मूल कैसे होगा ?
प्रश्न - इसबात को सभी कोई जानते हैं कि जैनधर्म का उद्देश " अहिंसा परमोधर्मः " है। इसी के सम्बन्ध में विचार करना है । रात्रि में पूजन करने से बहुत आरंभ होता है इसे आबालवृद्ध अंगीकार करेंगे क्योंकि रात्रि के समय में कार्यों के करने में किसी तरह उनकी देख रेख तो हो ही नहीं सकती और इसी से अयत्नाचार होता है। अयत्नाचार की प्राचुर्यता हो जाने से हिंसा भी फिर उसी तरह होगी। दूसरी बात यह है कि श्रावकों के लिये वैसे ही आरम्भ के कम करने का उपदेश है और धर्म कार्यों में तो विशेषता से होना चाहिये । सो तो दूर रहा उल्टा धर्म कार्यों में अत्यन्त आरम्भ बढ़ाकर अपनी इन्द्रियों को धर्म की ओट में आश्रय देना कहां तक योग्य कहा जा सकेगा ?
उत्तर- रात्रि में एक तरह के धर्म कार्य के करने से जैनधर्म के उद्देश के भंग होने की कल्पना करना अनुचित हैं । यह कहना उस समय ठीक कह सकते थे जब हम सर्व तरह का काम छोड़ कर रात्रि में मुनी की समान होकर बैट
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