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संशयतिमिरप्रदीप ।
देते हैं तो इसके करने से हमारे व्रतों में अथवा सम्यक्त्व में किसी तरह की हानि नहीं दिखाई देती । फिर इसके मानने में क्या दोष है ? यदि गोमय की शुद्धि के बिना हमारा काम अटका न रहता तो ठीकही था उस अवस्था में इसके न मानने में भी हमारी कोई विशेष हानि न थी। परन्तु जब इसके बिना काम ही चलता नहीं दिखाई देता फिर इतनी असहासताक्यों ?
यह बात हमारे महाशय ही दतावे कि यदि गोमय शुद्धि न मानी जावै तो भूमिकी शुद्धि किसतरह हो सकेगी कदाचित् कहो कि सर्व प्रकार की शुद्धि के लिये जल बहुत उपयोगी है परन्तु यह हमने कहीं नहीं देखा कि पुरीष आदि महा घृणित पदार्थो से अपवित्र भूमिकी शुद्धि केवल जल से ही करली जाती हो। दूसरे यह बताना चाहिये कि गोमय के विना उक्त प्रकार अपवित्र भूमिकी शुद्धि हो सकेगी उसके लिये किस शास्त्र का और किन महर्षियों का वचन है । क्योंकि इस विषय में जितनी शास्त्रों को प्रमाणता हो सकेगी उतनी युक्ति यों को नहीं हो सकती । इसलिये शास्त्र प्रमाण अवश्य होना चाहिये । गोमय शुद्धि शास्त्र विहित है या नहीं इसबात को हम इसी लेख में बतावंगे।
यदि इतने पर भी गोमय शुद्धि ध्यान में न आवे तो इसे आश्चर्य कहना चाहिये । लोक में अभी भी कितनी बातें ऐसी देखी जाती है यदि उनकी उत्पत्ति की तरफ ध्यान दिया जाय तो एक वस्तु भी ध्यान में पवित्र नहीं आ सकेंगी और इसी विचार से यदि उन्हें व्यवहार में लाना छोड़ दिया जाय तो लोक में कितनी वस्तु का व्यवहार वन्द हो जाने से बहुत कुछ हानि के होने की संभावना की जा सकती है।
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