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संशयतिमिरप्रदीप।
प्रकृत विषय मुंडन पर विवेचन करने का है । यद्यपि प्रवृति तो कुछ और ही देखी जाती है परन्तु इस से हम अपना शास्त्र मार्ग से च्युत होना ठीक नहीं समझते । इसलिये यह तो खुलासा किये ही देते हैं कि मुंडन अर्थात् चौलकर्म जिसे केशा वाप भी कहते है जैनशास्त्रों से विरुद्ध नहीं है । परन्तु ध्यान. रहे कि जिस प्रकार मुंडन विषय के सम्बन्ध में ब्राह्मण लोगों का कहना है अथवा जिस तरह वे करते हैं उस प्रकार जैन शास्त्रों में मुंडन का विवेचन नहीं है । उसे तोमहर्षियों ने सर्वथा मिथ्यात्व का ही कारण कहा है । मुंडन से जैनाचार्यों का क्या तात्पर्य है इसे नीचे शास्त्रानुसार खुलासा करते हैं ।
श्रीमद्भगवजिनसेन महर्षि महापुराण के ३० वे पर्व में मुंडन के सम्बन्ध में यो लिखते हैं :
केशावापस्तु केशानां शुभेऽन्हि व्यपरोपणम् । सोरेण कर्मणा देवगुरुपूजापुरःसरम् ॥ गन्धोदकार्दितान्कृत्वा केशान् शेषाक्षतोचितान् । मौण्डयमस्य विधेयं स्यात्सचलूं वाऽन्वयोचितम् ॥ सपनोदकधौताङ्गमनुलिप्तं सभूषणम् । प्रणमय्य मुनीन्पश्चायोजयेद्वन्धुताशिषा ॥ चौलाख्यया प्रतीतेयं कृतपुण्याहमाला। क्रियाऽस्यामाहतो लोको यतते परयामुदा॥
(इति केशावापः) अर्थात्-देव और गुरु की पूजन पूर्वक क्षौर कर्म से शुभ दिन में बालक के शिर के केशो के कटवाने को केशावाप क्रिया
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