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संशयतिमिरप्रदीप ।
का अवलम्बन करेगी यह विषय संशयोपहत है। जो हो यह तो अवश्य कहना पडेगा कि गृहस्थों को अपने आचार विचार के शास्त्रों का अभ्यास करना चाहिये । हम लोगों के लिये यही कल्याण का मार्ग है । मुनि धर्म सम्बन्धी शास्त्र हमारे लिये एक तरह से उपयोगी नहीं है कदाचित् कहो कि क्यों ? इसके खुलासा के लिये कवि प्रवर बनारसीदास जी का इतिहास सामने उपस्थित है।जरा बनारसी विलास का पाठ कर जाइये उससे स्पष्ट हो जायगा।
2. मुण्डन विषय.
(चौलकर्म)
श्राद्ध, आचमन, और तर्पण की तरह मुण्डन भी वर्तमान प्रवृत्ति के अनुसार एक नया विषय है। चाहे जैन शास्त्रों में भलेही प्राचीन हो परन्तु अभी के लोगों के ध्यान में नहीं आसकेगा। यह बात दूसरी है कि मुण्डन विषय का जैन शास्त्रों में उल्लेख है परन्तु यदि किसी को इस विषय का श्रद्धान कराने के लिये प्रतीति कराई जाय तो, शायद ही इसे कोई स्वीकार करने की हामी भरेगा । मैं जहां तक खयाल करता हूँ इसे भी मिथ्यात्व का कारण बता कर निषेध करेंगे । इसे जैनियों का एक तरह से दौर्भाग्य कहना चाहिये कि आज भी जैन समाज में प्रत्येक विषय के शास्त्रों को विद्यमान रहते भी उन पर श्रद्धा काम नहीं करती। जिन्हें साक्षामिथ्यात्व कहना चा
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