Book Title: Sanshay Timir Pradip
Author(s): Udaylal Kasliwal
Publisher: Swantroday Karyalay

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Page 158
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संशयतिमिरप्रदीप। १३९ को संकुचित कर लेते है कि मुंडन के कराने में कौन सी हानि है। किसी विषय की जब तक अनुपयुक्तता नहीं बतायी जायगी तबतक कौन यह बात मानेगा कि अमुक विषय ठीक नहीं है। केवल मुख मात्र के चार अक्षर निकाल देने से निषेध नहीं होता उसके लिये युक्ति प्रमाण भी होने चाहिये । केवल मुख मात्र के कहने से ही यदि प्रमाणता मानली जाय तो जैनियों को भी वैष्णवादि के जैन धर्म की निन्दा करने से अपना धर्म छोड़ देना चाहिये । परन्तु आज तक ऐसा हुआ भी है ? इसलिये यह कहना है कि यातो प्राचीन महर्षियों के कथनानुसार अपनी प्रवृति को ठीक करनी चाहिये या निषेध ही करना प्रधान कर्म है तो उसके लिये जरा प्रमाण और युक्तियों के ढंढने के लिये आयास उठाना चाहिये और लोगों को यह कर बताना योग्य है कि देखो इस विषय का यो निषेध होता है और ये उसमें शास्त्र प्रमाण हैं । बस इतनी ही बात तो इधर के पर्वत को इधर उठा कर धर सकेगी। किं बहुना। 2रात्रि पूजन. इसलेख को प्रश्नोत्तर रूप से पाठकों के सामने समर्पित करते हैं। प्रश्नोत्तर के द्वारा विषयनिर्णय अच्छी तरह होजाने की संभावना है। प्रश्न--रात्रि पूजन करना कितने लोगों के मुहँ से अच्छा नहीं सुना है? For Private And Personal Use Only

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