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संशयतिमिरप्रदीप ।
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गर्भधानादि विधियों में होम पूजन किया जाता है उसी तरह इस समय भी पुण्याहवाचक से होमादि विधि करके सुगन्ध पदार्थों से बालक को लेपन लगाकर उसका कुशोदक से सिञ्चन करना चाहिये । फिर जव, उड़द, तिल, शाल, समी वृक्ष के पत्र तथा गोमय इनसे छह शरावो को भर कर उस्तर दिशा में रखे । धनु, कन्या, मत्स्य, वृष, मेष राशि के होने पर यवादिक से भरे हुवे जो छह शरावे हैं उन्हें बालक के चारों ओर धरे । इसके बाद छुरी जिसे प्रचलित भाषा में उस्तरा कहते हैं, कर्तरी ( कतरनी) कर्चसप्तक और इनके सुधारने का पाषाण (सिल्ली ) इन्हें पूर्ण भरे हुवे कलशों के आगे धर कर गन्ध पुष्प और अक्षतादि मंगलीक वस्तुएं क्षेपण करनी चाहिये। धोये हुवे कपड़ों को धारण किये बैठा हुआ, बालक का पिता कुछ ठंडे और गरम जलके पात्र में बालक की माता सहित बालक का सिंचन करे। और बैठा हुआ ही दही से क्षेपण करके उसी जल से मस्तक के वालों का दक्षिण हाथ से सि
चन करे । वाम हाथ से उनका घर्षण करे। उसके बाद नवनीत (मक्खन ) से वालो को रगड़ कर गरम जल से उन्हें धो डाले फिर मंगल कलश के जल से तथा गन्धोदक से सेचन करे । मस्तक के दक्षिण तरफ के केशों में तीन स्थान बनाना चाहिये। पहिले स्थान के केशो को कतरना चाहिये । शालि के पात्र को आगे धर कर खदिर वृक्ष की सलाई से पुष्पों से युक्त पांच दर्भ से गन्घद्रब्य से केशों की वर्तिका बनाकर उन्हें अंगुली तथा अगुष्ठ से पकड़ कर वालक का पिता कतरे।
इसी तरह और भी शास्त्रों में लिखा हुआ है। अब हमारे वे महोदय बतावै जो मुंडन विषय को सुनने से शरीरावयव
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