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संशय तिमिरप्रदीप |
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कहते हैं । इसीका खुलासा किया जाता है। पहले केशों को गन्धोदक से गीले करके फिर उन्हें जिन भगवान् की पूजन के समय के शेषाक्षतों से युक्त करने चाहिये । फिर बालक का मुंडन शिखा (चौटी ) सहित अथवा अपने कुल के अनुसार करना योग्य है। मुंडन हुवे बाद स्नान कराकर बालक के शरीर में गन्ध वगैरह सुगन्धत वस्तुओं का लेपन तथा भूषण पहराना चाहिये । इन क्रियाओं की समाप्ति हो जाने पर पहले उस बालक को मुनियों के पास लेजाकर उन्हें नमस्कार कराना चाहिये। इसके बाद बन्धु लोगों के आशीर्वाद से उस बालक को योजित करें । पुण्याह बाचन मङ्गल स्वरूप इस क्रियाको "चौलकर्म" कहते हैं इस क्रिया में लोगों को बहुत सम्पदा पूर्वक प्रयत्न करना चाहिये ।
श्री इन्द्रनन्दि पूजासार में जहाँ गर्भाधानादि क्रियाओं के नाम लिखे हैं उन में केशावाप ( मुंडन ) भी लिखा हुआ है:
आधानप्रीतिसीमन्तजातकर्माभिधानकम् । बहिर्यानं निषद्यान्नकेशवापाक्षरोद्यमाः ॥ सुवाचनोपनीतिश्व व्रतं दर्शनपूर्वकम् । सामायिकाद्यनुष्ठानं श्रावकाध्ययनार्चनम् ॥
अर्थात् आधान, प्रीति, सीमन्त, जातकर्म, वहिर्यान, निषद्या अन्नप्रासन, केशावाप, (चौलकर्म ) इसी का नाम मुंडन है । अक्षराभ्यास, सुवाचन, उपनयन (यज्ञोपवीत) दर्शन ( वर्ताव तरण), सामायिकादि अनुष्ठान, श्रावकाध्यन इसतरह मुंडन का विषय लिखा हुआ है।
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