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संशयतिमिरप्रदीप ।
गोमय शुद्धि आठ प्रकार की शुद्धि में गोमय शुद्धि भी मानी गई है। यह शास्त्र की आशा है और लौकिक व्यवहार में भी दिन रात यही देखने में आता है । गोमय से भूमि की पवित्रता होती है । गोमय को छोड़ कर अपवित्र भूमि की पवित्रता कदापि नहीं हो सकती ऐसा पुराने पुरुषों का भी कहना है । परन्तु समय के फेरसौं कितनों की बुद्धि इसे ठीक नहीं कहती उनका कथन है कि जिस तरह और पशुओं का पुरीप अपवित्र और अस्पर्श माना गया है इसी तरह इसे भी अपवित्र समझना चाहिये यह कौन कहेगा कि पञ्चेन्द्रियों के पुरीष में भी पवित्रता तथा अपवित्रता की कल्पना करना ठीक है । इसे पवित्रमानने वालों से हमारा यही पूछना है कि इस विषय में किस युक्ति वा प्रमाण का आश्रय लेंगे और यह बात सिद्ध कर बतावेग कि गोमय अपवित्र नहीं किन्तु पवित्र है ? __ हमारे महाशय की शंका वेशक ठीक है परन्तु यदि वे निष्पक्ष मार्ग पर चलने का संकल्प करें तो अन्यथा हमने किसी तरह समझाया भी और इनका चित्त किसी कारण से प्रतिबन्ध में ही फंसा रहा तो काहिये उस कहने से भी क्या सिद्धि होगी? इसलिये हम यह बात जानने की अभिलाषा प्रगट करते हैं कि आप निष्पक्ष दृष्टि रक्खेंगे न ?
देखिये निष्पक्षता के विषय में एक ग्रन्थकार ने कहा है किपक्षपातो न मे वीरे न द्वेषः कपिलादिषु । युक्तिमद्वचनं यस्य तस्य कार्यः परिग्रहः ।।
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