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१०८ संशयतिमिरप्रदीप । के देखने से यह उनका सर्वथा भ्रम जान पड़ता है। चामरों के विषय में और भी प्रमाण मिलते हैं:यशस्तिलक में लिखा है किः
यज्ञैर्मुदावभृथभाग्निरुपास्य देवं . पुष्पाञ्जलिप्रकरपूरितपादपीठम् । श्वेतातपत्रचमरीरुहदर्पणाये
राराधयामि पुनरेनमिनं जिनानाम् । अर्थात् -पुष्पों के समूह से भूषित चरण कमल युक्त जिनदेव की भक्ति पूर्वक पूजन करके फिर भी श्वेत छत्र, चमरीरुह, अर्थात् चमरी गाय के चामर और दर्पण आदि द्रव्यों से पूजन करता हूं।
भूपाल स्तोत्र में भीःदेवःश्वेतातपत्रत्रयचपरिरुहाशोकभाश्चक्रभाषापुष्पौघासारसिंहासनमुरपटहैरष्टभिः प्रातिहाथैः । साश्चर्यैर्धाजमानः मुरमनुजसभाम्भोजिनीभानुमाली पायानः पादपीठीकृतसकलजगत्पादमौलिजिनेन्द्रः ।
इसी तरह आदि पुराणादि ग्रन्थों में चामरों के वाबत लिखा हुआ है। और वास्तव में है भी ठीक । यही कारण है कि मयूर पिच्छिका मुनियों तक के काम में आती है क्या वह चामरों के समान पशुओं के शरीर से पैदा नहीं होती है ? जब ऐसा है तो फिर इन बातों को माननी चाहिये।
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