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संशयतिमिरप्रदीप।
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___ अर्थात्-दूर्वाङ्कुर, सर्पपादि मंगल द्रव्यों से युक्त हरित गोमयादिकी के पिंड से जिन भगवान् का अवतरण (नीराजन) जिसे आरती भी कहते हैं करके उसे पूर्व दिशा में स्थापित करता हूं । इस प्रकार और भी पूजन पाठ पुस्तकों में गोमय नीराजन विधि में स्वीकार किया गया है। कहीं २ गोमय का भस्म भी लिखा है
देहेऽस्मिन्विहितार्चने निनदति प्रारब्धगीतध्वनावातोद्यः स्तुतिपाठमङ्गलरवैश्वा-नन्दिनि प्राङ्गणे । मृत्स्नागोमयभूतिपिंडहीरतादर्भमूनाक्षतेरम्भोभिश्च सचन्दनैर्जिनपते राजनां प्रलवे ।
यह पाठ यशस्तिलक में भगवत्सोमदेव स्वामी ने लिखा है । यह बात विचारणीय है कि गोमय लौकिक प्रवृति तथा शास्त्रानुसार तो अपवित्र नहीं कही जासकती। अब तीसरा ऐसा कोन कारण है जिससे हमारे भाई उसे ग्राह्य नहीं समझते । हां कदाचित् वे इसे पञ्चन्द्रियों का पुरीष होने से अपवित्र कहेंगे परन्तु यह भी एक तरह भ्रमही है इसे हम पहले अच्छी तरह प्रतिपादन कर आये हैं उसे ध्यान पूर्वक विचारना चाहिये। प्रश्न -गोमय का विषय तो हमने खूब समझ लिया परन्तु
बीच में तुम चमरों के सम्बन्ध में भी कुछ आड़ी टेड़ी कह गये हो उस पर हमारा यह कहना है तुमने चामरों को पवित्र और ग्राह्य बताये हैं परन्तु यह अनुचित है। यदि यह कहना तुम्हारा ठीक है तो फिर यह तो
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