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संशयतिमिरप्रदीप। ११५ अर्थात्-संसार समुद्र के तिरने के लिये प्रयन्त शील और क्रिया मंत्र व्रतादिको करके अपने समान हो उसके लिये कन्या पृथ्वी सुवर्ण हाथी घोड़ा रथ और रत्नादिको का दान देना चाहिये । यदि क्रिया मंत्रादिको करके अपने समान का सम्बन्ध न मिले तो मध्यम पात्रों को उक्त प्रकार दान देना चाहिये।
श्री सागार धर्मामृत में लिखा है किनिस्तारकोत्तमायाथ मध्यमाय सधर्मणे । कन्याभूहेमहस्त्यश्वरथरत्नादि मिवपेत ।। अर्थात्-संसार समुद्र के तिरने के लिये उपाय करने में प्रयत्न शील और क्रिया व्रत मंत्रादिकां करके अपने तुल्य अथवा इनकी अविद्यमानता में मध्यम पात्रों को कन्या भूमि सुवर्ण हस्ती घोड़ा और रथ इत्यादि वस्तुओं का दान उनकी ठीक स्थिति के लिये अर्थात् संसार सम्बन्धी व्यवहार उनका अच्छी तरह निर्वाह होता रहे इसलिये देना चाहिये।
___धर्मसंग्रह में यों कहा है:त्रिभुदया गृहिणा तस्माद्वांछताऽऽहितमात्मनः । दीयतां सकलादत्तिरियं सर्वमुखभदा ॥ कुल जातिक्रियामंत्रैः स्वसमाय सधर्मिण । भूकन्याहेमरमाश्वरथहस्यादि निर्दपेत् ।। निरन्तरेहया गर्भाधानादिक्रियमंत्रयोः । व्रताश्च सपर्येभ्यो दद्यात्कन्यादिकं शुभम् ।। निस्तारकोत्तमं यज्ञकल्पादिझं बुभुक्षुकम् । बरं कन्यादिदानेन सत्कुर्वन्ध धारकः ।।
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