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संशय तिमिरप्रदीप |
१२९
अर्थात् - देश विरति ग्रहस्थों को दिन में प्रतिमायोग, वीरचर्या, नियम पूर्वक नित्यप्रति त्रिकाल योग का धारण करना और सिद्धान्त शास्त्रोंका अध्ययन इन विषयों में अधिकार नहीं है ।
श्री वसुनन्दि श्रावकाचार में - दिणपाडमवीरचर्यातियाळयोगधरणं णियमेण । सिद्धान्तरहस्साधयणं अधियारो णत्थिदेशविरदाणं । अर्थात् - दिन में प्रतिमायोग धारण करने का, वीरचर्या स्वीकार करके आहार लेनेका, नियम से त्रिकाल योग धारण करने का तथा सिद्धान्त शास्त्रों के अध्ययन का देशविरति लोगों को अधिकार नहीं है ।
सागारधर्मामृत में
थावको वीरचयist: प्रतिमातापनादिषु । स्यान्नाधिकारी सिद्धान्तरहस्याध्ययनेऽपि च ॥
अर्थात् - श्रावक लोग, वीरचर्या के, दिन में प्रतिमायोग के धारण करने के तथा सिद्धान्त शास्त्रों के अध्ययन करने के अधिकारी नहीं है ।
श्री धर्मसंग्रह में:
कल्पन्ते वीरचर्या प्रतिमातापनादयः ।
न श्रावकस्य सिद्धान्तरहस्याध्ययनादिकम् ॥ अर्थात् - वीरचर्या से अहारादि के करने के दिन में प्रतिमायोग से परीतापनादिकों के सेवन करने के तथा सिद्धान्ताचार सम्बन्धी ग्रन्थों के पठन पाठन के अधिकारी ग्रहस्थ लोग नहीं हैं।
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