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संशयतिमिरप्रदीप ।
उनकी प्रतिष्ठा करानी चाहिये । और सुवर्णादिकों से संघ को अच्छी तरह धर्म बुद्धि पूर्वक सन्तोषित करना योग्य है । जिन भगवान् के अभिषेकादि कार्यों के लिये गौ का दान देना चाहिये। धर्म की स्थिति बनी रहे किसी कारण से धर्म कार्यों में विघ्न न आवे इस अभिप्राय से दरिद्री धर्मात्मा शुद्ध श्रावक पुत्रों के लिये कन्यादान देना अत्यन्त परोपकार का कारण है। यहां पर कन्यादान का प्रयोजन कन्या कादेदेना नहीं समझनाचाहिए। किन्तु इसका यह तात्पर्य है कि कदाचित् कर्म योग से कोई श्रावक पुत्रदरिद्री है किन्तु वास्तव में अत्यन्त धर्मात्मा है तो यथा ऽर्ष पद्धत्यनुसार उसका विवाह करना चाहिये । जिस तरह श्रावकाचार का मार्ग है उसी तरह उसका पालन करने वाला है परन्तु पाप कर्मों के परिपाक से बिचारा दरिद्री अर्थात् धन से रहित है तो श्रावक लोगों का प्रधान कर्त्तव्य है कि उसके धर्माचार की स्थिति के लिये स्वर्णादि द्रव्यों का दान दे जिस से उसको संसार सम्बन्धि किसी तरह की आकुलता नहो और धर्म का सेवन निर्विन चलता रहे । वास्तव में यह बात है भी ठीक जो लोग दरीद्री होते हैं संसार में उनकी बड़ी ही दुर्दशा होती है। उन्हें कण कण के लिये दूसरा का मुंह ताकना पड़ता है चारों ओर विचारों का तिरस्कार होता है। जहां जाते हैं वहां इतनी बुरी दृष्टि से देखे जाते हैं कि जिसके लिखने को लेखनी कुंठित होती है। यह बात उनसे पूछिये जिन्हें इस दरीद्र व्याघ्र का सिकार बनना पड़ा है । इसी से कहते हैं कि जैन महर्षियों की बुद्धि की अद्वितीय शक्ति है। उन्होंने श्रावकों को यह पहले ही उपदेश कर दिया कि देखो अपने भाईयों की खबर कभी मत भूलना इसी उपदेश से यह
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