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संशयतिमिरप्रदीप। १९ और भी गोमय के सम्बंध में लिखा है:यथा रमवती भूमिः शोध्यते गोमयेन वा । नवेन सद्यो जातेन तथा तीर्थजलेन च ॥ ततः पाकः प्रकर्तव्यः शोधनानन्तरं गृहे । यदा कार्य तदाप्येवं नो चेदुच्छिष्टदूषणम् ॥
अर्थात्-जिस तरह तात्कालिक गोमय से रसोई सम्बन्धी भूमि शुद्ध की जाती है उसी तरह चौका लगाकर पीछे पवित्र जल से उसे शुद्ध करनी चाहिये इसके बाद भोजन बनाना ठीक है। ऐसा नहीं करने से उछिष्ट का दोष लगता है। यही गोमय शुद्धि का प्रकार है।
पाठक महोदय ! गोमय शुद्धि का प्रकार तो बताचुके । अब यह और बताये देते हैं कि गोमय और कहां कहां काम में आता है। जिन भगवान् की नीराजन विधि होती है जिसे आरती भी कहते हैं । वहां पर भी गोमय उपयोग में आता है । वह इस तरह है।
श्रीइन्द्रनन्द्रि संहिता मेंसिद्धार्थदूर्वाग्रसमग्रपङ्गलैरस्पृष्टभूमिः कपिलासगोमयः। कृत्वा कृतार्थस्य महेऽवतारणं देवेन्द्रदेशे विनिवेशयामि ॥ __ ॐ ह्रीं क्रों दूर्वाधैरसर्षपादियुक्तैहरितगोपयादिपिंडक भगवतोऽहतोऽवतरणं करोमि दुरितमस्माकमपनयतु भगवा. न्स्वाहा ।
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