________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
संशय तिमिरप्रदीप |
१०५
अर्थात् - न तो मेरा वीर जिनेन्द्र में पक्षपात है और न कपिलादि ऋषियों से मुझे किसी तरह द्वेष है । किन्तु यह बात अवश्य कहूंगा कि जिसके वचन युक्ति पूर्ण हों फिर चाहे वह वीर जिन हो अथवा कपिलादि मुनि, अथवा अन्य कोई उसी के बचन ग्रहण करने चाहिये। इसी तरह आप का पक्ष गोमय के निषेध में है और हमारा उसके विधान में एक तरह से दोनों ही पक्ष हैं। परन्तु इसमें जिसके बचन युक्ति और शास्त्र से मिलते हुवे हों उन्हें ग्रहण करना चाहिये ।
आप का यह कहना है कि गोमय अपवित्र है मान लिया जाय कि वह अपवित्र है परन्तु यह अपवित्रता का विधान केवल दिली विधान है इसे लोक मैं तो सिवाय आप तथा आप के सहगामी सज्जनों के और कोई स्वीकार नहीं करेगा और यदि ऐसाही है तो फिर आप को भी गोमय से साफ की हुई पृथ्वी पर नहीं बैठना चाहिये । इस से परहेज करने वाले तो हमारे देखने में आजतक कोई नहीं आये ? किन्तु ऐसे लोग बहुत देखने में आये हैं जो अपने को बड़े भारी धर्मात्मा जाहिर करते हैं और इन लौकिक शुद्धियों का निषेध भी करते हैं परन्तु गोमय की बासना से वे भी विनिर्मुक्त नहीं हो सके। अस्तु इसे जाने दीजिये हमारा व्यक्तिगत किसी से कुछ कहने का अभिप्राय नहीं है ।
गोमय शुद्धि यह एक लौकिक क्रिया है । इसके करने का विधान गृहस्थों के लिये है । आचार्यो ने यह बात लिखी है कि जैनियों का सम्पूर्ण लौकिक विधि प्रमाण मानना चाहिये परन्तु वह विधि ऐसी होनी चाहिये कि जिससे अपने व्रत तथा सम्यक्त्व में हानि न हो। जब हम गोमय शुद्धि की तरफ ध्यान
For Private And Personal Use Only