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___ संशयतिमिरप्रदोप।
स्वस्त्यनं ततः कृत्वा प्रतिज्ञां तु विधापयेत् । जिनयज्ञस्य च ध्यानं परमात्मानमव्ययम् ।। जिनाहानं ततः कुर्यात्कायोत्सर्गेण पूजकः । स्थापनं सन्निधिं चैव समंत्रर्जिनपूजने ॥ पुनः पद्मासनं धृत्वा नाममालां पठेद्बुधः । अष्टधा द्रव्यमाश्रित्य भावेन पूजयेजिनम् ।। पठित्वा जिननामानि दद्यात्पुष्पाञ्जलि खल्लु । जिनानां जयमालायै पूर्णा तु प्रदापयेत् ।। कायोत्सर्गेण भो धीमान् पठित्वा शान्तिकं ततः । क्षमतव्यो जिनान्सर्वान् क्रियते तु विसर्जनम् ।। अर्थात्-धोया हुवा वस्त्र, पवित्र, ब्रह्मसूत्र, और अलंकारादिकों के साथ जिन भगवान् के चरणार्चन के गन्ध माल्य को धारण करके पूजन करना चाहिये। पद्मासन से बैठकर पहले मंगल स्वरूप नमस्कार मंत्र को, और फिर सरण शब्द के उच्चारण पूर्वक अर्थात् “ अर्हन्त सरणं पव्वजामि " इत्यादि जिन भगवान की पूजन में पढ़ना चाहिये। इसके बाद स्वस्तिक, जिन पूजन की प्रतिज्ञा, ध्यान, और परमात्मा का चिन्तवन करना चाहिये। फिर कायोत्सर्ग से खड़ा होकर पूजक पुरुष को जिन भगवान् की पूजन में मंत्र पूर्वक आह्वानन, स्थापन, और सन्निधापन करना चाहिये । अनन्तर पद्मासन से बैठ कर जिन भगवान की नाममाला को पढ़े और भक्ति पूर्वक आठ द्रव्यों से पूजन करे। जिन भगवान की नामावली को पढ़ कर पुष्पाशालि देनी चाहिये । इत्यादि क्रियाओं को यथा विधि करके
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