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संशयतिमिरप्रदीप ।
लोगों को दर्शनों का अन्तराय होता है और वह आपके लिये भी उसी का कारण है परन्तु इस उचित शिक्षा को माने कौन उनके पीछे तो एक बड़ा भारी चार अक्षरों का ग्रह लगा हुआ है। अस्तु, इस पर हमारे पाठक महाशय ही बिचार करें कि यह शास्त्राचा कितने गौरव की है जो किसी प्रकार लोगों के परिणामों में विकलता नहीं होने देती। ऐसी २ उत्तम बाते भी हमारे भाइयों की बुद्धि में न आवे तो इसे कलियुग के प्रभाव के विना और क्या कहसकते हैं।
" बैठी पूजन हम अपने पाठको को कितने विषयों के सम्बन्ध में परिचय करा आये हैं। इस समय विषय यह उपस्थित है कि जिन भगवान की पूजन किस तरह करनी चाहिये । कितने लोगों का कहना है कि पूजन खड़े होकर करनी चाहिये । महात्मा लोगों की पूजन के समय खड़ा रहना अतिशय विनय गुण का सूचक है। और कितनों का कहना इसके विरुद्ध है । वे कहते हैं कि यह बात न कहीं देखी जाती है और न सुनने में आई कि बड़े पुरुषों की सेवा खड़े होकर ही करनी पड़ती है । किन्तु यह बात अवश्य देखी जाती है कि जिस समय किसी महापुरुष का आगमन कहीं पर होता है उस समय उनके सत्कार के लिये खड़ा होना पड़ता है। और उनके बैठ जाने पर ही बैठ जाना पड़ता है । यही प्राचीन प्रणाली भी है । उसी अनुसार महर्षि बीरनन्दि प्रणीत चन्द्रप्रभु चरित्र में भी किसी स्थल
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