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संशयतिमिरप्रदीप।
___ अर्थात्-मान पूर्वदिशा की ओर मुख करके करना चाहिये । उत्तरदिशा की तरफ मुँह कर के दन्तधावन, दक्षिण दिशा की ओर शुक्ल पत्रों को, धारण करना योग्य है। तथा जिनभगवान् की पूजन पूर्वदिशा तथा उत्तरदिशा की तरफ मुख करके करनी चाहिय।
और भी:तत्रार्चकः स्यात्पूर्वस्यामुत्तरस्यां च सन्मुखः । दक्षिणस्यां दिशायां च विदिशायां च वर्षयेत् ।। पश्चिमाभिमुखः कुर्यात् पूजां चच्छ्रीजिनेशिनः । वदा स्यात्सन्ततिच्छेदो दक्षिणस्यां समन्तातिः ॥ अग्नेयां च कृता पूजा धनहानिर्दिने दिने । वायव्यां सन्तति व नैऋत्यान्तु कुलक्षया ॥ ईशान्या नैव कर्तव्या पूजा सौभाग्यहारिणी ॥
अर्थात्-पूजक पुरुष को पूर्वदिशा तथा उत्तरदिशा में जिनभगवान् के सम्मुख रहना चाहिये । दक्षिण तथा विदिशाओं में पूजन करना ठीक नहीं है । वही खुलासा किया जाता है । जिन भगवान की पूजन पश्चिम दिशा की ओर करने वाले के सन्तति का नाश होता है। दक्षिण की ओर की हुई पूजा मृत्यु की कारण होती है। अग्नि कोण में मुख करके पूजन करने वाले को दिनों दिन धन की हानि होती है। वायव्य कोण की ओर पूजन करने से सन्तान का अभाव होता है। नैऋत्यदिशा की तरफ की हुई पूजा कुल के नाश की कारण मानी गई है । और सौभाग्य हरण करने वाली ईशान दिशा में पूजा कभी नहीं करनी चाहिये ।
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