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संशयतिमिरप्रदीप ।
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प्रर्थात्-जिस दिन भगवान् के गर्भावतार, जन्माभिषेक, दीक्षाकल्याप, ज्ञान कल्याण और मोक्षकल्याण हुवे हो उस दिन इक्षुरस, घो, दही, दूध और गन्धजल इत्यादिकों से भरे हुवे कलमों से अभिषेक करने को, रात्रि में जागरण तथा संगीत नाटकादि करने की, तथा इसी तरह दसलाक्षण, शोडषकारण पौर रखत्यादि योग्य पर्वो में अभिषेकादि करने को काल पूजा कहते हैं। श्रीवामदेव भावसंग्रह में कहते हैं कि
ततः कुम्भं समुहाये तोयचोचेक्षुसहशैः । सतैश्च ततो दुग्धैर्दधिभिः सापये जिनम् ॥ पर्थात्-पश्चात् कलशोद्दार पूर्वक जिन भगवान् का इक्षुरस, पामरस, घी, दूध और दहो से अभिषेक करता हूं। श्रीयोगीन्द्रदेव श्रावकाचार में लिखते हैं किजोजिथुएहावइ घयपयहिं सुरहिं एहाविजइ सोइ ।
सो पावर जोकरइ एहुपसिहउ लोए । अर्थात्-जो जिन भगवान् का घी और दूध से खान अर्थात् अभिषेक करते हैं वे देवताओं के हागनान कराये जाते हैं। इसे सब कोई स्वीकार करेंगे कि जो जैसा कर्म करते है वे वैसाही उसका फल भो पति हैं। श्रीयशस्तिलक महाकाव्य के अष्टमोछास में लिखा है किद्राक्षाखर्जरचीचेचप्राचीनामलकोद्भवः।
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