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संशयतिमिरप्रदीप।
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कथनानुसार अभिषेक कराना मानाजाय । मुनियों के कथन को प्रतिमानों के कथन से मिलाकर एक शुद्ध और निर्दोष विषय को बाधित कहना ठीक
नहीं है। प्रश्न- पञ्चामृत किसे कहते हैं यह भी समझ में नहीं पाता?
कितने तो पञ्चामृत में मधु को भी मिलाते हैं।
उत्तर-पञ्चामृत के विषय में भटाकलंकदेव प्रतिष्ठा तिलब
में यों लिखते हैंनोरं तरसश्चैव गोरसटतोयं तथा। पञ्चामृतमिति प्रोक्तं जिनस्नपनकर्मणि ॥ अर्थात -जल, वृक्षों का रस और तीन गोरस अर्थात दूध, दही और घो इन्ही पांच वस्तुओं को जिनाभिषेक विधि में पञ्चामृत कहते हैं। जिन शास्त्रों में पञ्चामत में मधु का ग्रहण नहीं है किन्तु वैष्णवमत में मधु का पञ्चामृत में ग्रहण किया है। जैनशास्त्रों में मधु को अत्यन्त अपवित्र माना है फिर पाप ही कहें कि महर्षि लोग इसे पवित्र कैसे कहेंगे? प्रश्न- पञ्चामृताभिषेक की सामग्री का योग मिलाने से
बहुत प्रारंभ होता है और जिन धर्म का उद्देश पारंभ
के कर्म करने का है। उत्तर--पहले तो रहस्यों को प्रारंभ का त्याग ही नहीं हो
मकता। यदि थोड़ी देर के लिये मान भी लिया जाय तो, क्यामन्दिर ववधाना, प्रतिष्ठा करवाना, रथयात्रा निलकवानी इत्यादि कार्यों में आरंभनहीं होता और
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