________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
३. संशयतिमिरप्रदीप । काश्मीर पंकहरिचन्दनसारसान्द्र
निष्यन्दनादिरचितेन विलेपनेन । अव्याजसौरभवनं प्रतिमां जिनस्य ।
संचर्चयामि भवदुःखविनाशनाय ॥ भावार्थ -स्वभाव से सुगन्धित शरीर को धारण करनेवाली जिन भगवान की प्रतिमाओं को केसर और हरिचन्दनादि सु. गन्धित द्रव्यों से बनाये हुए विलेपन से संसार के दुःखों को नाश करने के लिये पूजता हूं।
श्री वसुनन्दि जिन संहिता में लिखा है :अनर्चितं पदबंई कंकुमादिविलेपनैः । बिम्ब पश्यति जैनेन्द्रं ज्ञानहीनः स उच्यते ॥ अर्थात्- केशरादिकों के विलेपन से रहित जिन भगवान के चरण कमलों के दर्शन करनेवाला ज्ञान करके हौन समझना चाहिये। श्री एक सन्धि संहिता में लिखा है :यस्य नो जिनविम्बस्य चर्चितं कुंकुमादिभिः । पादपद्मदयं भव्यस्त हन्यं नैव धार्मिकैः ॥ पर्थात्-जिन जिनप्रतिमाओं के चरणों पर केशरादि सुगन्ध द्रव्यों का विलेपन नहीं लगा हुआ हो उन्हें धर्मात्मा पुरुष नमस्कारादि नहीं करे।
इन्द्रनन्दि पूजा सार में :
For Private And Personal Use Only