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संशयतिमिरप्रदीप।
इसो प्रतिष्ठा पाठ में और भी
श्रौजिनेश्वरचरणस्पर्शादना पूजा जाता सा माला महाभिषेकावसाने बहुधनेन ग्राह्या भव्यश्रावकेनेति।
अर्थात्-जिनभगवान् के चरण कमलों के स्पर्श से अमोल्य पूजन हुई है। इसलिये वह पुष्पमाला महाभिषेक की समाप्ति होने पर अन्त में बड़े भारो धन के साथ भव्य पुरुषों को ग्रहण करनी चाहिये। तथा वृत्तकथाकोष में श्रीश्रुतसागरमुनि लिखते हैं:तत्पशाच्छ्रेष्ठिपुत्रौति प्राह भने श्रुगा बुवे । व्रतं ते दुर्लभं येनेहामुत्र प्राप्यते मुखम् ॥ शुक्लथावणमासस्य सप्तमीदिवसई ताम् । स्नापन पूजनं कृत्वा भक्त्याष्टविधमूर्जितम् ॥ धीयते मुकुटं मूभिं रचितं कुसुमोत्करैः । कराठे श्रीवृषभेशस्य पुष्पमाला च ध्रौयते ॥ अर्थात् - सेठ की पुत्री के प्रश्न को सुनकर अर्यिका कहती हुई । हे पुत्रि ! मैं तुम्हार कल्याण के लिये व्रत का उपदेश करती हूं। उस व्रत के प्रभाव से इसलोक में तथा परलोक में दुर्लभ, सुख प्राप्त होता है । उसे तुम सुनो । श्रावण सुदि सप्तमी के दिन जिनभगवान् का अभिषेक तथा आठ प्रकार के द्रव्यों से पूजन करके वृषभजिनेन्द के मस्तक पर नाना प्रकार के फलों से बनाया हुआ मुकुट तथा कंठ में पुष्पों की माला पहरानी
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