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संशयतिमिरप्रदीप।
के करने में भी इस कठोर शब्द का उच्चारण करना हानि कारकमालूम पड़ता है। सच पूछियेतोजोशब्द जैनियों के मुहँ पर लाने योग्य नहीं है वही शब्द जिन भगवान् की पूजन में जगहँ २ उचारण किया जाता है। इसे हदय की संकीर्णता को छोड़ कर और क्या कह सकते हैं। जिमलोगों के निरंतर ऐसे व्यग्र परिणाम रहते हैं मैं नहीं समझता कि वेलोग जिन धर्म के लाभसे कभी अपनी आत्मा को शान्त करेंगे । उन लोगों का यह कहना केवल ऊपरी ढंग का है कि हरित फलों के चढ़ाने से परिणामों की शुद्धि नहीं रहती इसलिय वाह्य साधनों की शुद्धि होनी चाहिये। वेलांग बहुत कुछ उत्तम मार्ग पर चलने वाले हैं जो किसी तरह भक्तिमार्ग में लगे हुवे हैं और जिन भगवान् की पूजनादि आस्था पूर्वक करते हैं। अरे!मान लिया जाय कि ऐसे लोग किसी तरह असमर्थ भी हुवे तो क्या हुआ परन्तु वे अपने परिणामों को तो विकल नहीं करते हैं । वे शुभ के भोक्ता होते हैं यह निश्चय है। जरा षट्कर्मोपदेशरत्नमाला को निकाल कर उसमें उस कथा का मनन कर जाईये जिस में तोते के भक्ति पूर्वक आम्र फल के चढ़ाने का फल लिखा हुआ है। फला के चढ़ाने से हिंसा होती है या नहीं इस विषय का समाधान प्रसंगानुसार “ दीप पूजन" के विषय में भले प्रकार कर आये है । उसी स्थल से अपने चित्त का निकाल करलेना चाहिये।
फलों के चढ़ाने से विशेष लाभ नहीं घताना यह भी स्वबुद्धि के अनुकूल कहना है । आचार्यों ने फलपूजन
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