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संशय तिमिर प्रदीप |
वस्त्रयुग्मं यज्ञसूत्रं कुंडले मुकुटं तथा । मुद्रिकां कङ्कणं चेति कुर्याञ्चन्दनभूषणम् ॥
ब्रह्मग्रन्थिसमायुक्तं दर्भेखिपंचभिः स्मृतम् । मुष्ट्यग्रं वलयं रम्यं पविचमिति धार्यते ॥ एवं जिनाङ्गि गन्धैश्च सर्वाङ्गं खस्य भूषयेत् । इन्द्रोहमिति मत्वात्र जिनपूजा विधीयते ॥
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अर्थात्-दो वस्त्र, यज्ञोपवीत, दोनों कानों में दो कुण्डल, मस्तक के ऊपर मुकुट, मुद्रिका, कङ्गण, चन्दन का तिलक, और ब्रह्मग्रन्थि करके युक्त तोन अथवा पांच दर्भ से बना हुआ मनोहर वलय जिसे पवित्र भो कहते हैं, इन संपूर्ण अलङ्कारों को धारण करे । तथा इसी तरह जिनभगवान् के चरणों पर चढ़े हुए चन्दन से अपने सर्व शरीर को शोभित करके मैं इन्द्र ह ऐसा समझ के जिन भगवान् की पूजन करनी चाहिये। इसी अवसर में उक्त पुष्प माला के कण्ठ में धारण करने की आज्ञा है । पं० श्राशावर प्रतिष्ठा पाठ में लिखते हैं
जिनाङ्गिस्पर्शमात्रेण चैलोक्यानुगृहक्षमाम्
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इमां खर्गरमादूत धारयामि वरस्रजम् ॥
अर्थात् - जिन भगवान् के चरणों के स्पर्श होने मात्र से त्रिभुवन के जीवों पर अनुग्रह करने में समर्थ और स्वर्ग की लक्ष्मौ के प्राप्त कराने में प्रधान दासो, पवित्र पुष्प माला को कंठ में धारण करता हूं ।