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संशयतिमिरप्रदीप।
दुष्प्राप्य नहीं है फिर यह तो घी है। अच्छा यह भी मान लिया जाय कि पवित्र घी नहीं मिलता फिर यह तो कहो कि श्रावक लोगों के लिये जो घी काम में आता है वह अपवित्र है क्या ? खैर !श्रावकों की बात जाने दीजिये जो घी व्रती लोगों के काम में आता है यह कैसा है ? उसे तो पवित्र हीकहना पड़ेगा। उस घी को दीपकादि के लिये काम में लाया जाय तो क्या हानि है ? हां एक बात तो रह ही गई ! नैवेद्य के बनाने में भी तो यही घी काम में लायाजाता है फिर उसी घी को एक जगहँ पवित्र और एक जगहँ अपवित्र कहना
यह आश्चर्य नहीं है क्या? प्रश्न--कितने लोगों के मुंह से यह कहते हुवे सुना है कि गाय
भैस आदि को चरने के लिये जंगल में नहीं जाने देना चाहिये। उन्हें घरही में रख कर खिलाना पिलाना चाहिये । जिससे वे अपवित्र पदार्थों को नहीं खाने पावे फिर उन्हीं के घी दूध आदि को जिनभगवान् की पूज
म के काम में लाना चाहिये। उत्तर-यह वर्णन किसी मूलग्रन्थ में नहीं देखा जाता। केवल
मन की नवीन कल्पना है । और न किसी को इस विषय में आगे पांव धरते देखा । फिर यह नहीं कह सकते कि इस प्रश्न का कितना अंश ठीक हैं । हम तो इस बात को पहले देखेंगे कि यह बात शास्त्रानुसार है या नहीं जो बात शास्त्रानुसार होगी उसे ही प्रमाण
मानेगे। प्रश- यह कैसे कहते हो कि यह बात शास्त्रानुसार नहीं है ?
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